Book Title: Tulsi Prajna 2005 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ पालकालीन अर्थात् 9-10वीं शताब्दी की थी । इससे यह तो निश्चित होता है कि लछवाड़ में महावीर की स्मृति में ही प्राचीन काल में कोई मंदिर अवश्य बना था, किन्तु यह महावीर का जन्मस्थल था, यह स्वीकार करने में अनेक बाधाएं हैं। इस संबंध में डॉ. सीताराम राय का एक लेख श्रमण, अगस्त 1989 में प्रकाशित हुआ था । उन्होंने लछवाड़ को महावीर का जन्म स्थान स्वीकार किये जाने के सन्दर्भ में एक तर्क यह दिया है कि कल्पसूत्र का कुण्डग्राम पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित था जबकि वैशाली के पास वसुकुण्ड में पहाड़ों का नामो-निशान नहीं है । किन्तु लेखक ने यह निर्णय कैसे ले लिया कि कल्पसूत्र में कुण्डग्राम को पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित बताया गया है। कल्पसूत्र में एवं आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध में महावीर के जन्म का पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित होना कहीं भी उल्लेखित नहीं है। इसी प्रकार प्रस्तुत लेखक ने यह भी लिखा है कि महावीर गृहस्थ जीवन के परित्याग के अवसर पर कुण्डग्राम का परित्याग कर उससे उत्तर-पश्चिम की ओर पहाड़ की ओर ज्ञातृखण्डवन पहुँचने का वर्णन मिलता हैं, किन्तु यहाँ भी पहाड़ की कल्पना लेखक की स्वैर कल्पना है । आचारांग, कल्पसूत्र यहाँ तक की आवश्यकचूर्णि में भी जहां ज्ञातृ वनखण्ड का उल्लेख है, वहां भी कहीं पहाड़ आदि होने का उल्लेख नहीं हैं। सीताराम राय ने जुमई अनुमण्डल के लछवाड़ को, जो महावीर का जन्म स्थल मानने का प्रयत्न किया है और उसकी पुष्टि में आवश्यकचूर्णि में उल्लेखित उनकी विहार यात्रा के कुछ गांव यथा - कुमार, कोल्लागं, मोरक, अस्थिय ग्राम का समीकरण वर्तमान कुमार, कोन्नाग, मोरा और अस्थावा से करने का जो प्रयत्न किया है, वह नाम साम्य को देखकर तो थोड़ा सा विश्वसनीय प्रतीत होता है किन्तु जब हम इनकी दूरियों का विचार करते हैं तो वैशाली के निकटवर्ती कुमार, कोल्हुवा, अत्थिय गांव आदि से ही अधिक संगति मिलती है । वर्तमान में भी भिन्न-भिन्न प्रदेशों और मण्डलों के समान नाम वाले गांवों के नाम उपलब्ध हो जाते हैं । वस्तुत: डॉ. सीताराम राय ने जो समीकरण बनाने का प्रयास किया है वह दूरियों के हिसाब से समुचित नहीं है। उन्होंने जमुई से वर्तमान पावा की आगमों में उल्लेखित 12 योजन की दूरी को आधुनिक पावापुरी से समीकृत करने का जो प्रयत्न किया है वह तो किसी भी रूप में मान्य नहीं हो सकता । लेखक ने स्वयं भी जमुई से पांवापुरी तक की यात्रा की है। बारह योजन की दूरी का तात्पर्य लगभग 160 कि.मी. होता है, जबकि जमुई से पांवापुरी की दूरी मात्र 60 कि.मी. के लगभग है। अत: चाहे जमुई को महावीर का केवलज्ञान का स्थान मान भी लिया जाय तो उससे वर्तमान पांवा की दूरी आगमिक आधारों से सिद्ध नहीं होती । वर्धमान महावीर के वैशालिक होने का एक प्रमाण हमें थेरगाथा की अट्ठकथा तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2005 Jain Education International For Private & Personal Use Only 9 www.jainelibrary.org

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