Book Title: Tulsi Prajna 2005 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ (व्याख्या) में मिलता है। थेरगाथा में वर्धमान थेर का उल्लेख है। उनमें कहा गया है कि दान के पुण्य के परिणाम स्वरूप वर्धमान देवलोक से च्युत होकर गौतमबुद्ध के जन्म लेने पर वैशाली के लिछवी राजकुल में उत्पन्न होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। (इमस्मि बुद्धप्पादे वेसालियं लिच्छवि राजकुले निव्बत्ति वडढमानों तिस्स नामं अहोसि-। थेरगाथा अट्ठकथा नालन्दा संस्करण पृ. 153) इस प्रकार यहां उन्हें वैशाली के लिछवी राजकुल में जन्म लेने वाला बताया गया। यद्यपि परम्परागत विद्वानों का यह विचार हो सकता है कि ये वर्धमान बौद्ध परम्परा में दीक्षित कोई अन्य व्यक्ति होंगे, किन्तु हमारा यह स्पष्ट अनुभव है कि जिस प्रकार ऋषिभाषित सभी अर्हतऋषि निर्ग्रन्थ परम्परा के नहीं हैं, उसी प्रकार थेरगाथा में वर्णित सभी स्थविर बौद्ध नहीं हैं। वैशाली के लिछवी राजकुल में उत्पन्न बुद्ध के समकालिक वर्धमान महावीर से भिन्न नहीं माने जा सकते। थेरगाथा की अट्ठकथा के अनुसार उन्होंने आंतरिक और बाह्य संयोगों को छोड़कर रूपराग, अरूपराग तथा भवराग को समाप्त करने का उपदेश दिया तथा यह कहा कि अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों को साक्षीभाव से देखते हुए भवराग और संयोजनों का प्रहाण संभव हैं, क्योंकि उनके ये विचार आचारांग एवं उत्तराध्ययन में भी मिलते हैं । इस उपदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि थेरगाथा में वर्णित वर्धमान थेर अन्य कोई नहीं, अपितु वर्धमान महावीर ही हैं। इस आधार पर भी यह सिद्ध होता है कि महावीर का जन्म वैशाली के लिछवी कुल में हुआ था। महावीर के प्रवर्जित होने का उल्लेख करते समय यहाँ स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि संवेग (वैराग्य) उत्पन्न होने पर उन्होंने अग्निकर्म का त्याग करके, संघ से क्षमायाचना' करके, कर्म परम्परा को देख करके प्रव्रज्या ग्रहण की। यह समग्र कथन भी जैन (निर्ग्रन्थ) परम्परा के अनुकूल ही है, अतः इससे भी यही सिद्ध होता है कि थेरगाथा के वैशाली के लिछवी कुल उत्पन्न वर्धमान थेर वर्धमान महावीर ही है। इस प्रकार बौद्ध त्रिपिटक साहित्य भी महावीर के जन्म स्थल के रूप में विदेह के अन्तर्गत वैशाली को ही मानते हैं। पाश्चात्य विद्वानों में हरमन जैकोबी, हार्नले, विसेण्टस्मिथ, मुनिश्री कल्याणविजयजी, डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, ज्योतिप्रसाद जैन, पं. सुखलालजी आदि जैन-अजैन सभी विद्वान् वैशाली के निकटस्थ कुण्डग्राम को ही महावीर का जन्म स्थल मानते हैं। बौद्धग्रन्थ महावग्ग (ईस्वीपर्व 5वीं शती) में वैशाली के तीन क्षेत्र माने गये हैं। 1. वैशाली, 2. कुण्डपुर एवं 3. वाणिज्यग्राम। महावीर का लिछवी राजकुल में जन्म मानने पर भी यह स्पष्ट है कि महावग्ग के अनुसार वैशाली में 7707 राजा थे। अतः महावीर के पिता को राजा मानने में बौद्ध साहित्य से भी कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि वहाँ राजा शब्द का अर्थ वैशाली महासंघ की संघीय सभा का सदस्य होना ही है। • 10 - तुलसी प्रज्ञा अंक 127 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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