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कांट का शुद्ध हेतुवाद पुद्गल अथवा पदार्थ के अस्तित्व को नकारता हैं। द्वैतवादी जैन और सांख्य दर्शन पदार्थ के अस्तित्व को भी मान्य करता है। उनके अनुसार पदार्थ मेरा है, यह भौतिकवादी दृष्टिकोण है, पदार्थ मेरा नहीं है, यह अध्यात्मवादी दृष्टिकोण हैं, अध्यात्म का प्रारम्भ बिन्दु है । "मैं शरीर हूं" यह भौतिकता का प्रारम्भ बिन्दु है । "मैं भिन्न हूं शरीर भिन्न है-यह अध्यात्म का प्रारम्भ बिन्दू है । पदार्थ भौतिक है। पदार्थ के उपयोग में राग, द्वेष न हो, यह आध्यात्मिक चेतना है।
अध्यात्म का अर्थ है--राग, द्वेष और मोह से विमुक्त चेतना, वैराग्य । वैराग्य विज्ञान का फलित नहीं है । पदार्थ से भिन्नता की अनुभूति करना उसका लक्ष्य भी नहीं है । तब वैराग्य उसकी निष्पत्ति कैसे हो सकती है ? एक सांसारिक मनुष्य रागात्मक जीवन जीना चाहता है । वह उसे सरस और वैराग्यपूर्ण जीवन को नीरस मानता है। इस बिन्दु पर विज्ञान उसके लिए अधिक वांछनीय बनता है किन्तु रागात्मकता असीम या निरंकुश होकर मानवता के सम्मुख संकट उपस्थित करती हैं। इस संकटपूर्ण स्थिति का निर्माण हो चुका है । अणुशस्त्रों का निर्माण, विध्वंसक सामग्री का उच्छृखल प्रयोग, पर्यावरण का प्रदूषण-ये सारी समस्याएं रागात्मकता की असीम भूमि से उत्पन्न हुई हैं । यदि सामाजिक मनुष्य के लिए राग आवश्यक है तो विराग भी आवश्यक है। राग और विराग की सीमा का निर्धारण करने के लिए आवश्यक है-अध्यात्म और विज्ञान का समन्वित दृष्टिकोण ।
खंड १८, अक १
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