Book Title: Tulsi Prajna 1993 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ सिद्ध हो चुका है अथवा जिसके विज्ञान सम्मत सिद्ध होने की सम्भावना अभी वैज्ञानिक खोजों के परिणाम स्वरूप जो सर्वाधिक प्रश्न चिन्ह लगे हैं वे जैन धर्म की खगोल व भूगोल संबंधी मान्यताओं पर हैं। यह सत्य है कि खगोल व भूगोल संबंधी जैन अवधारणायें आज के वैज्ञानिक खोजों से भिन्न पड़ती है और आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में उनका समीकरण बैठा पाना भी कठिन है। यहां सबसे पहला प्रश्न यह है कि क्या जैन खगोल व भूगोल सर्वज्ञ प्रणीत है या सर्वज्ञ की वाणी है ? इस सम्बन्ध में पर्याप्त विचार की आवश्यकता है। सर्वप्रथम तो हमें जान लेना चाहिए कि जैन खगोल व भूगोल संबंधी विवरण स्थानांग, समवायांग एवं भगवती को छोड़ कर अन्य अंग आगमों में कहीं भी उल्लिखित नहीं है। स्थानांग और समवायांग में भी वे सुव्यवस्थित रूप में प्रतिपादित नहीं हैं, मात्र संख्या के संदर्भ क्रम में सम्बन्धित संख्याओं का उल्लेख कर दिया गया है। वैसे भी जहां तक विद्वानों का प्रश्न है, वे इन्हें संकलनात्मक एवं अपेक्षाकृत परवर्ती ग्रन्थ मानते हैं। साथ ही यह भी मानते हैं कि इनमें समय-समय पर सामग्री प्रक्षिप्त होती रही है, अतः उनका वर्तमान स्वरूप पूर्णतः जिन प्रणीत नहीं कहा जा सकता है । जैन खगोल व भूगोल सम्बन्धी जो अवधारणायें उपलब्ध हैं, उनका आगमिक आधार चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति एवं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति है, जिन्हें वर्तमान में उपांग के रूप में मान्य किया जाता है, किन्तु नन्दीसूत्र की सूची के अनुसार ये ग्रंथ आवश्यक व्यतिरिक्त अंग बाह्य आगमों में परिगणित किये जाते हैं । परम्परागत दष्टि से अंग बाह्य आगमों के उपदेष्टा एवं रचयिता जिन न होकर स्थविर ही माने गये हैं और इससे यह फलित होता है कि ये ग्रन्थ सर्वज्ञ प्रणीत न होकर छद्मस्थ जैन आचार्यों द्वारा प्रणीत है । अतः यदि इनमें प्रतिपादित तथ्य आधुनिक विज्ञान के प्रतिकूल जाते हैं तो उससे सर्वज्ञ की सर्वज्ञता पर आंच नहीं आती है। हमें इस भय का भी परित्याग कर देना चाहिए कि यदि हम खगोल एवं भूगोल के सम्बन्ध में आधुनिक वैज्ञानिक गवेषणाओं को मान्य करेंगे तो उससे जिन की सर्वज्ञता पर कोई आंच आयेगी। यहां यह भी स्मरण रहे कि सर्वज्ञ या जिन केवल उपदेश देते हैं, ग्रन्थ लेखन का कार्य तो उनके गणधर या अन्य स्थविर आचार्य ही करते हैं साथ ही यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सर्वज्ञ के लिए उपदेश का विषय तो अध्यात्म व आचार शास्त्र ही होता है खगोल व भूगोल उनके मूल प्रतिपाद्य नहीं है। खगोल व भूगोल सम्बन्धी जो अवधारणायें जैन परम्परा में मिलती हैं वे थोड़े अन्तर के साथ समकालिक बौद्ध व हिन्दू परम्परा में भी पायी जाती है । अतः यह मानना ही उचित होगा कि खगोल एवं भूगोल सम्बन्धी जैन मान्यताएं यदि आज विज्ञान सम्मत सिद्ध नहीं खंड १९, अक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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