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दोनों अपने आप में सार्वभौम हैं। अतः यह कहना कि सभी अध्यात्म के अन्दर था जाते हैं-निरर्थक है । विश्व में आध्यात्मिक नेताओं की कमी नहीं रही है। फिर भी अध्यात्म के नाम पर अनेक जुर्म किये गये हैं।
अध्यात्म की कमजोरियों ने ही समाज पर अपार दुःख लादा है। अध्यात्म को धर्म का पर्याय माना गया और धर्म के कारण विश्व में अनेक युद्ध हुए। अतः अध्यात्म का पहला दोष रहा कि यह धर्म के साथ एकरूप हो गया। अध्यात्म का दूसरा दोष यह रहा कि इसने व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन दिया तथा सामाजिक चेतना के विकास में बाधक तत्त्व का काम किया। संन्यास जीवन की पूर्णता नहीं है। यह तो जीवन के अंत की स्थिति है । अतः अखंड अध्यात्म ही वास्तविक अध्यात्म है और यदि अखंड अध्यात्म सच्चा अध्यात्म है तो इसे जीवन के हर क्षेत्र और कार्यों में साकार होना आवश्यक है। अध्यात्म के नाम पर रूढियों और पाखंडों को अधिक दिनों तक ढोया नहीं जा सकता । उन्होंने भारतीय अध्यात्मवाद के नवसंस्कार पर बल दिया। डॉ. सिंह ने बतलाया कि विज्ञान अपने आप में हेय नहीं है। यह हेय इस लिए हो गया है कि इससे वैज्ञानिक वृत्ति का विकास नहीं हो पाया है,
और इसका राजनीतिकरण तथा व्यावसायीकरण हो गया है। अतः आध्यात्मिकता का कोई महत्त्व नहीं है यदि यह जीवन में नहीं उतरता । अतः वर्तमान अध्यात्म की खामियों को दूर करना तथा कथित अध्यात्म की भर्त्सना करना सच्चे अध्यात्म के विकास के लिए आवश्यक है । भारतीय अध्यात्मवाद भौतिकता से ग्रसित है जो आणविक युद्ध से भी अधिक खतरनाक है ।
__डॉ० कौशल्यावल्ली, जम्मू ने अपने "अध्यात्म व विज्ञान' निबन्ध में उपनिषद्, गीता तथा संतों की अनुभूतियों के आधार पर अध्यात्म को समग्र और सार्वभौम बतलाया। उनकी दृष्टि में आत्म-श्रद्धा अध्यात्म का सबसे बड़ा संदेश है। अध्यात्म जीवन के हर क्षेत्र में उतारने की वस्तु है। विज्ञान के साथ इसका कोई विरोध नहीं है । मनुष्य अच्छा बुरा हो सकता है, विज्ञान नहीं, क्योंकि यह तो नीति निरपेक्ष है।
परिसंवाद का पंचम और अंतिम सत्र प्रसिद्ध भूगोल शास्त्री, गांधीवादी और पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो० आर. पी. मिश्रा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस सत्र में प्रो० एस. आर. भट्ट, प्रो० दशरथसिंह और श्री अनिलदत्त मिश्रा ने अपना-अपना विचार प्रस्तुत किया जिस पर अच्छी परिचर्चा हुई।
प्रो० एस. आर. भट्ट ने अपने प्रखर और विश्लेषणात्मक भाषण में यह स्पष्ट किया कि न तो विज्ञान को अध्यात्म में और न अध्यात्म को विज्ञान में ही रूपान्तरित किया जा सकता है । यह भी कहना गलत होगा कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी हैं। वास्तविक संबंध दोनों के बीच संवादिता का है । विज्ञान अपनी अनेकताओं के मध्य भी आध्यात्मिक ऐक्य का
खंड १९, अंक १
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