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आवश्यक है और अध्यात्म विज्ञान को मनोजगत् की ओर खोज करने के लिए प्रेरित करता है।
एक बाह्य जगत् की समस्या का हल है तो दूसरा आंतरिक जगत् की समस्या का हल । अतः दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।।
तृतीय पत्र वाचन सत्र ११.४.९३ को डॉ० सम्पूर्ण सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें डॉ० सी. एल. तलेसरा, डॉ० दयानन्द भार्गव और डॉ० रज्जन कुमार ने अपना-अपना पत्र-वाचन किया। परिचर्चा में ८-१० व्यक्तियों ने भाग लिया। सत्र के अन्त में युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ ने अपना निर्णायक भाषण प्रस्तुत कर विचारों को एक निश्चित दिशा प्रदान की।
प्रो० तलेसरा ने बतलाया कि विश्व में बढ़ते हुए तनाव, जनसंख्या विस्फोट, आर्थिक विषमता तथा पर्यावरण प्रदूषण की संकटपूर्ण परिस्थिति में अध्यात्म और विज्ञान के बीच अंतःक्रियाओं का होना परमावश्यक हो गया है। वर्तमान संकट ने पुनः प्राचीन भारतीय जीवन पद्धति~-यथा उपवास, आसन, ध्यान और प्राणायाम की अर्थवत्ता को स्पष्ट कर दिया है। यदि अहिंसा को समाज के धरातल पर प्रस्तुत करना है तो इसके लिए अध्यात्म और विज्ञान के बीच अंत क्रिया होना अनिवार्य है। वस्तुत: यह प्रश्न अब तक अचर्चित रहा कि अध्यात्म और विज्ञान में वास्तविक सम्बन्ध क्या होना चाहिएदोनों में अंतःक्रिया हो या संयोग, दोनों में अंतःक्रिया हो या समानान्तर चले ? दोनों एक हैं या भिन्न और यदि एक हैं तो किस अर्थ में, और भिन्न हैं तो किस अर्थ में ? समन्वय की भूमिका क्या होगी? वैचारिक या मूल्यपरक, व्यावहारिक या सैद्धांतिक, स्थाई या अस्थाई ? इन प्रश्नों पर गंभीरता पूर्वक चिंतन होना चाहिए।
प्रो० दयानन्द भार्गव ने अपने सारगभित निबन्ध में विज्ञान के सैद्धांतिक और प्रायोगिक पक्षों को प्रस्तुत करते हुए इस बात को स्पष्ट किया कि अध्यात्म विज्ञान की सीमा से बाहर है और विज्ञान के द्वारा लाई गई विकृतियों का एकमात्र निदान अध्यात्म के पास है। विज्ञान, जिसकी मूल मान्यता कारण-कार्य सिद्धांत है, तर्क पर आधारित है और यह अंधविश्वास का विरोधी है। परन्तु सत्य को समझने का एकमात्र साधन तर्क नहीं है । तर्क की अपनी सीमा है। यह द्वैत तक ही सीमित है, अद्वैत को ग्रहण करने की क्षमता इसमें नहीं है। इसका आधार विभाव है, स्वभाव नहीं । यह अप्रतिष्ठित है, निश्चयात्मक नहीं। यह ससोम को ही जान सकता है, असीम को नहीं । प्रकृति से परे अचित्य विषयों को तर्क से नहीं जाना जा सकता। अतः तर्क सम्पूर्ण जीवन को समझ नहीं सकता। श्रद्धा, मैत्री, प्रेम, आत्मबलिदान, त्याग आदि कुछ ऐसे मूल्य हैं जो तर्कातीत हैं। यही तर्कातीत क्षेत्र अध्यात्म का मूल विषय है। अत: अध्यात्म के क्षेत्र में किसी साधन विशेष का
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तुलसी प्रज्ञा
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