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वैज्ञानिक सत्यों को नकारने से । विज्ञान और आगम के सन्दर्भ में आज एक तटस्थ समीक्षक बुद्धि की आवश्यकता है ।
जैन सृष्टिशास्त्र और खगोल-भूगोल भी आधुनिक वैज्ञानिक अवधारणाओं के साथ एक सीमा तक संगति रखता है। जैन सृष्टिशास्त्र इस जगत् को अनादि व अनन्त मानता है, किन्तु इसमें जगत् की अनादि और अनन्तता उसके प्रवाह की दृष्टि से है। इसे अनादि और अनन्त इसलिए कहा जाता है क्योंकि कोई भी काल ऐसा नहीं था जब सृष्टि नहीं थी और न कोई काल ऐसा आवेगा जब यह नहीं होगी। प्रवाह की दृष्टि से जगत् अनादि व अनन्त होते हुए भी इसमें प्रतिक्षण उत्पत्ति और विनाश अर्थात् सृष्टि और प्रलय का क्रम भी चलता रहता है, दूसरे शब्दों में यह जगत् अपने प्रवाह की अपेक्षा से शाश्वत होते हुए भी इसमें सृष्टि व प्रलय होते रहते हैं क्योंकि जो भी उत्पन्न होता है उसका विनाश अपरिहार्य है फिर भी इसका स्रष्टा या कर्ता कोई भी नहीं है । यह सब प्राकृतिक नियम से ही शासित है। यदि वैज्ञानिक दृष्टि से इस पर विचार करें तो विज्ञान को भी इस तथ्य को स्वीकार करने में भापत्ति नहीं है कि यह विश्व अपने मूल तत्व या मूल घटक की दृष्टि से अनादि व अनन्त होते हुए भी इसमें सृजन व विनाश की प्रक्रिया सतत् रूप से चल रही है। यहां तक विज्ञान व जैन दर्शन दोनों साथ जाते हैं। दोनों इस संबंध में भी एक मत हैं कि जगत् का कोई स्रष्टा नहीं है और यह प्राकृतिक नियम से शासित है। साथ ही अनन्त विश्व में सृष्टि लोकों की सीमितता जैन दर्शन एवं विज्ञान दोनों को मान्य है। इन मूल-भूत अवधारणाओं में साम्यता के होते हुए भी जब भी हम इनके विस्तार में जाते हैं तो हमें जैन आगमिक मान्यताओं एवं आधुनिक विज्ञान दोनों में पर्याप्त अन्तर भी प्रतीत होता है।
___अधोलोक, मध्यलोक व स्वर्गलोक की कल्पना लगभग सभी धर्म- . दर्शनों में उपलब्ध है, किन्तु आधुनिक विज्ञान के द्वारा खगोल' का जो विवरण प्रस्तुत किया जाता है, उसमें इस प्रकार की कोई कल्पना नहीं है। पृथ्वी के नीचे नरक व ऊपर स्वर्ग है--यह भी नहीं मान्य है। आधुनिक खगोल विज्ञान के अनुसार इस विश्व में असंख्य सौर मण्डल हैं और प्रत्येक सौर मण्डल में अनेक ग्रह-नक्षत्र व पृथ्वियां हैं। असंख्य सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र की अवधारणा जैन परम्परा में भी मान्य है । यद्यपि आज तक विज्ञान यह सिद्ध नहीं कर पाया है कि पृथ्वी के अतिरिक्त किन ग्रह-नक्षत्रों पर जीवन पाया जाता है, किन्तु उसने इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया है कि इस ब्रह्माण्ड में अनेक ऐसे ग्रह-नक्षत्र हो सकते हैं जहां जीवन की संभावनाएं हैं । अतः इस विश्व में जीवन केवल पृथ्वी पर है यह भी चरम सत्य नहीं है । पृथ्वी के अतिरिक्त कुछ ग्रह-नक्षत्रों पर जीवन की संभवनाएं हो सकती
खंड १९, अंक १
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