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विकास होगा। सर्वांगीण विकास के लिए केवल बाहर की सूचनाएं प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि अपने आपको जानना भी परमावश्यक है।
श्री कृष्णराज मेहता ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आज अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की अति आवश्यकता है। इससे पूर्ण । सत्य का दर्शन होगा और अहिंसा तथा शांति का विकास होगा। उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि आचार्यश्री की सन्निधि में होने वाला यह परिसंवाद अवश्य ही अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय को व्यावहारिक बनाएगा।
डॉ० दयानन्द भार्गव ने अपने सारगर्भित भाषण में यह कहा कि विद्या और अविद्या, निश्चय और व्यवहार और ज्ञान और कर्म का द्वैत-यह मानव की शाश्वत समस्या है। परन्तु जीवन के विकास के लिए दोनों का सहयोग अपेक्षित है। फिर भी उन्होंने यह चेतावनी दी कि अध्यात्म और विज्ञान की एक दूसरे पर निर्भरता, कहीं एक दूसरे के शोषण का कारण न बन जाये।
__ इस परिसंवाद में यह तय करना होगा कि विज्ञान के उपयोग की सीमा क्या होगी? आज विज्ञान का व्यापारीकरण हो गया है और यह परिग्रह के साथ जुड़ गया है। अतः हमारे अन्दर और बाहर की खाई गहरी हो गयी है । अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय से इस खाई को पाटना होगा। उन्होंने यह विश्वास प्रकट किया कि जैन विश्वभारती में यह परिसंवाद होने के कारण यह मात्र अलंकरण नहीं होगा। इससे जीवन की एक दिशा निकलेगी।
श्री ॐ पूर्ण स्वतन्त्र ने यह उद्घोषणा की कि अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय, जीवन और कार्यों के माध्यम से मानवजाति के भविष्य को उज्ज्वल करेगा। इस अवसर पर डॉ० पी. आर. त्रिवेदी ने भी अपने उद्गार प्रकट किये। समारोह की अध्यक्षता डॉ० सम्पूर्ण सिंह ने की। कुलपति प्रो० रामजी सिंह ने स्वागत भाषण किया।
दिनांक १०.५.१९९३ को परिसंवाद के पत्रवाचन और परिचर्चा के दो सत्र सम्पन्न हुए। प्रथम सत्र मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसके मुख्य वक्ता स्वामी ॐ पूर्ण स्वतन्त्र थे। उस सत्र में लगभग ६-७ पूरक वक्ताओं ने अपने विचारों से परिसंवाद को सुसमृद्ध किया । दूसरा सत्र डॉ० दयानन्द भार्गव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें श्री कृष्णराज मेहता, श्री सम्पूर्णसिंह और डॉ० जे. पी. मिश्रा ने अपना-अपना पत्रवाचन किया। इस सत्र में भी लगभग ८-१० पूरक वक्ताओं ने भाग लिया।
श्री ॐ पूर्ण स्वतन्त्र ने अपने सारगर्भित भाषण में यह बतलाया कि विज्ञान और अध्यात्म अंततः दोनों विज्ञान ही हैं- एक भूत जगत् का विज्ञान है और दूसरा आत्म जगत् का विज्ञान । अतः नैसर्गिक रूप से दोनों में पूर्व से
खंड १९, अंक १
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