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डा० दौलतसिंह कोठारी १६०६-१९९३ विज्ञान और अहिंसा का संगम
बलभद्र भारती
डा० दौलतसिंह कोठारी का नाम भारत के ही नहीं अपितु विश्व के विख्यात वैज्ञानिकों की गिनती में आता है । वे एक महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक गूढ़ दार्शनिक भी थे। उनके व्यक्तित्व में एक यथार्थवादी वैज्ञानिक के नाते सत्य की विवेचना करने की शक्ति और एक संवेदनशील मानव के नाते प्रेम की धारा का अद्भुत संगम था ।
___ डा० कोठारी को संयोगवाद में आस्था थी। उनके पिता श्री फतहलाल की १९१८ में इन्दौर में लम्बी बीमारी के बाद मृत्यु हो गयी। वे अपने मित्र सिरहमल जी बाफना, जो इन्दौर राज्य के गृह मंत्री थे, के आग्रह पर इन्दौर गये हुए थे। उस समय दौलतसिंह जी की आयु १२ वर्ष की थी और वे अपने चार भाइयों व एक बहिन में सबसे बड़े थे। उनकी माता के निवेदन पर बाफना साहब ने दौलतसिंह जी को अपने घर (बाड़ी बाग) पर रख लिया और अपने बच्चों के साथ ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध करा दिया । दौलतसिंह जी ने १९२२ में इन्दौर से विज्ञान लेकर १० वीं कक्षा उत्तीर्ण की। यदि वे अपने पैतृक गृह उदयपुर में रहते तो वे विज्ञान की शिक्षा कदापि ग्रहण नहीं कर पाते क्योंकि उस समय उदयपुर में विज्ञान की शिक्षा का प्रबन्ध नहीं था। इसलिये वे कहा करते थे कि उनके पिता की मृत्यु एक ऐसा संयोग था, जिसके कारण वह इन्दौर रहकर विज्ञान के क्षेत्र में पदापर्ण कर सके । बाद में उन्होंने उदयपुर से ईन्टर पास किया और महाराणा उदयपुर द्वारा प्रदत्त एक छात्रवृत्ति के आधार पर ईलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया। यहां उन्हें प्रो० मेघनाद सहा के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् वहां से वे उच्च शिक्षाा के लिए केवंडिश लेबोरेट्री, केम्ब्रिज गये, जहां उन्हें लार्ड रुदरफोर्ड, प्रो. केप्टीजा, प्रो. आर. एच, फौलर के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। केम्ब्रिज से उन्होंने पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।
१९३४ में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्य करना आरम्भ
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तुलसी प्रज्ञा
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