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राष्ट्रीय विज्ञान एकेडमी में १९८९ में, मेघनाथ साहा व्याख्यान देते हुए, डा. कोठारी ने कहा कि आजकल दुनिया में प्रतिवर्ष ३ लाख करोड़ रुपया फौजी कामों में खर्च हो रहा है और ७० करोड़ व्यक्ति संसार में भूखे, नंगे और निरक्षर हैं । निःसंदेह निरस्त्रीकरण ही गरीबी उन्मूलन का मार्ग है और ये तभी सम्भव है जब विश्व के राष्ट्र अहिंसा का मार्ग स्वीकार करें ।
जैसा कि समण सुत्तं (१४७) में कहा है ज्ञानी होने का सार यही है कि वे किसी भी जीव, प्राणी की मन, वचन और काया से हिंसा न करें । अहिंसा मूलक समता ही धर्म है और यही अहिंसा का विज्ञान है । (सूत्रकृतांग १ -१४- १० )
में
भी यही कहा
१९५५ में रसल और आइन्सटाईन के घोषणा पत्र गया था और फिर १९८२ के पगवाश घोषणा पत्र में भी यही घोषणा की गई थी कि अभी भी संभलने का वक्त है । और इसके लिए आवश्यक है कि एक ओर तो वैज्ञानिक अपनी जिम्मेवारी समझें और दूसरे विश्व के राजनैतिक नेता ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय समझौते करें जिनसे कि निरस्त्रीकरण और अहिंसा की प्रवृत्तियों को बल मिले। तीसरे, जनसाधारण भी शिक्षा के माध्यम से लोकशक्ति को दृढ़ करे ताकि वे युद्ध के प्रचारकों और पक्षधरों का सामना कर सके और मानव अहिंसा और सहयोग के पथ पर अग्रसर हो ।
रूसी कम्यूनिष्ट राजतंत्र के टूटने से विश्व में सामरिक शक्तियों के ध्रुवीकरण का तो अब अन्त हो गया, फिर भी विश्व के कितने ही प्रदेशों में युद्ध और संघर्ष के बादल मंडरा रहे हैं । कारण असमानता, अन्याय और अज्ञान है । इनके विनाश में ही मनुष्य का कल्याण निहित है । इनका निराकरण कैसे हो, इस दिशा में भौतिक विज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र को निरन्तर अनुसंधान करना है जिससे नीति निर्धारकों का मार्ग प्रशस्त हो और मानव सर्वनाश से बच जाय ।
डा० कोठारी के अनुसार अन्ततोगत्वा मानव की सुरक्षा अणु और गांधी अर्थात् विज्ञान एवं संयम पर निर्भर है । धर्म और विज्ञान अनादिकाल से अंधकार, कट्टरवाद और अंधविश्वास के विरुद्ध धर्मयुद्ध में लिप्त है और ये युद्ध अभी जारी है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि काल प्रवाह में धर्म और विज्ञान की विजय सुनिश्चित है । सहयोग ही जीवन का नियम है और संघर्ष अपवाद |
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तुलसी प्रजा
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