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अर्थात् अन्य देवों की भी जो श्रद्धापूर्वक आराधना करते हैं, वह भी मेरी आराधना करते हैं - चाहे यह अनियमित ही क्यों न हो ।
डा. कोठारी की मान्यता थी कि समाज का संगठन परस्पर प्रेम और मैत्री पर आधारित है । प्रेम और मैत्री ही मानव जाति के अस्तित्व का मूल मंत्र है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हम बहुधा इस महावाक्य से भटक जाते हैं। उनका कहना था कि अहिंसा के मार्ग के पथिक को ईश्वर और मानव में पूरी श्रद्धा होनी चाहिये । मानव को विज्ञान और अहिंसा दोनों की आवश्यकता है । ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। यही वैज्ञानिक अहिंसा अथवा अहिंसात्मक विज्ञान है । भारतीय ऋषियों ने तो बहुत पहले ही कहा था कि भूमिः माता, पुत्रोऽहं पृथिव्याः । कालान्तर में हम इस सत्य से भटक गये । यह शुभलक्षण है कि अब पुनः मानव और प्रकृति में एक नया वार्तालाप शुरू हो रहा है ।
युग के बाद औद्योगिक
मानव सभ्यता की प्रगति के इतिहास में कृषि युग और फिर आणविक युग आया और अब हम सौर युग में प्रवेश करने जा रहे हैं । यह विज्ञान और अहिंसा का युग होगा । अणु विज्ञान ने मानव को अपरिमित साधन प्रदान किये हैं । उनके बुद्धिसंगत प्रयोग से ही अब नये सौर युग का शुभारम्भ होगा और अन्ततः मानवीय बुद्धि अहिंसावाद को स्वीकार करेगी ।
डा० कोठारी का कहना था कि अहिंसा मानव जाति की प्रगति का अटल नियम है ।
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गांधीजी कहा करते थे कि अहिंसा पशुबल से भी है | अहिंसा मानव के आत्म सम्मान की रक्षा करती है किया कि अहिंसा क्या है और स्वयं ही उत्तर दिया कि अहिंसा स्वयं कष्ट सहने की तलवार है और फिर उन्होंने इस तलवार का सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में सफल प्रयोग भी किया। उनका कहना था कि अभी इस शक्ति की खोज के बारे में कितने ही अन्य प्रयोग होने बाकी हैं ।
मानव ने अपने लम्बे इतिहास में अहिंसा और सहयोग के असंख्य बड़े मूल्यवान प्रयोग किये हैं किन्तु विडम्बना यह है कि हमें प्राय: हिंसा का ही इतिहास पढ़ाया जाता है । जो इतिहास हमें पढ़ाया जाता है वह बहुधा पाशविक शक्ति के ही गुणगान करता है और अन्तर्राष्ट्रीय जुर्मों, कत्लेयाम और नरसंहार का बखान करता है । स्पष्ट है कि इससे तामसिक वृत्तियों को उत्तेजना मिलती है । सिकन्दर को महान कहना इतना ही अनर्थ पैदा करेगा जितना हिटलर को महान कहना । जरूरत इस बात की है कि हमारे इतिहास के पाठ्यक्रम व अनुसंधान में शान्तिजनक प्रवृत्तियों पर भी उचित बल दिया जाये जिससे विद्यार्थी के मानस पर सात्विक गुणों की छाप पड़े । भारतीय
खण्ड १९, अंक १
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गांधीजी ने प्रश्न
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