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कारण विज्ञान उसकी उपेक्षा कर देता है । परिणाम होता है - परिमाण की वृद्धि तथा गुणवत्ता की हानि ।
हमारे बौद्धिक क्रिया-कलापों में परिमाण की वृद्धि और गुणवत्ता की न्यूनता देखने में आती है । पाणिनि की अष्टाध्यायी हो या उमास्वामी का तत्त्वार्थसूत्र या कृष्ण की भगवद् गीता, इन ग्रन्थों का परिमाण बहुत कम है, गुणवत्ता बहुत अधिक है । आज जो ग्रन्थ लिखे जा रहे हैं वे बृहदाकार हैं, किन्तु उनमें सार बहुत कम है । गति बढ़ाने की धुन में हम तेजी से लिखते हैं। इसलिए ग्रन्थ बड़ा हो जाता है । किन्तु ग्रन्थ लिखने के पीछे जो चिन्तन चाहिए वह काल - सापेक्ष है और हम गति तथा परिमाण बढ़ाने की धुन में भागे ही चले जाते हैं, रुककर सोचने का धीरज हम में नहीं है । जीवन में कुछ ऐसे मूल्यवान् लक्ष्य है जो स्थितप्रज्ञता की धृति से प्राप्त किये जा सकते हैं । लक्ष्य है । जब हम ज्ञान जल्दी प्राप्त करना चाहते हैं होकर खोखला होता है। जल्दी पैसा कमाने की धुन ही देती है । अपने राजनैतिक लक्ष्यों को जल्दी प्राप्त करने की इच्छा आतंकवाद जन्मदात्री है | अभिप्राय यह है कि जीवन में जितना महत्त्व गति का है, उतना ही धृति का भी है ।
गति की त्वरा से नहीं, ज्ञान एक इसी प्रकार का तो वह ज्ञान ठोस न भ्रष्टाचार को जन्म
तेजी से प्रगति करने की धुन प्रकृति के शोषण में बदल जाती है, पर्यावरण का असन्तुलन पैदा कर देती है। जैन परंपरा में वृक्ष से अपने आप गिरे हुए फल को खाने वाले को प्रशस्तलेश्या वाला और पेड़ को जड़ से उखाड़ने वाला अप्रशस्तलेश्या वाला बताया गया है। ये दो स्थितियां धैर्य और अधीरता की स्थितियां हैं। जिस दिन विज्ञान गतिशीलता के साथ-साथ यह जान लेगा कि प्रकृति की गति का भी एक नियम है और यदि हम उसका उल्लंघन करते हैं तो हमारी प्रगति अन्ततोगत्वा अवनति ही सिद्ध होती है, उस दिन विज्ञान एक नया मोड़ लेगा । प्रकृति की गति के नियम तीनों स्तरों पर काम करते हैं-आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक । अन्न के पकने के उदाहरण को देखें । आधिदैविक स्तर पर सूर्य की अग्नि उसे पकाती है । आधिभौतिक स्तर पर उसे आंच पर पकाया जाता है और आध्यात्मिक स्तर पर उसे जठराग्नि पचाती है । जब विज्ञान आधिदैविक स्तर पर उसे कृत्रिम खाद से जल्दी पकाता है तो उस अन्न में कहीं न्यूनता रह जाती है । जब तेज आंच पर उसे जल्दी पकाया जाता है तो उसके मिठास में कमी आती है। इसीलिए अनुभवी स्त्रियां कहती हैं कि धीमी आंच पर पकाया गया भोजन स्वादिष्ट होता है । आधिदैविक और आधिभौतिक दोनों स्तरों पर विज्ञान हस्तक्षेप कर रहा है । आध्यात्मिक स्तर पर भी पशुओं में कृत्रिम ढंग से भोजन देकर मोटापा बढ़ाने
तुलसी प्रज्ञा
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