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विज्ञान पर आध्यात्मिक नियन्त्रण की आवश्यकता
-दयानन्द भार्गव
विज्ञान के दो पक्ष मुख्य हैं-सिद्धान्त और प्रयोग । विज्ञान के सिद्धान्त का आधार कारण-कार्य सम्बन्ध है, जिसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि प्रत्येक कार्य का कोई न कोई कारण होना चाहिए । यह मान्यता विज्ञान को अंधविश्वास से बचाती है। इसी अवधारणा के आधार पर वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं। उन प्रयोगों की निष्पत्ति के रूप में कुछ ऐसे तकनीकी उपकरण प्राप्त होते हैं, जो हमारे लक्ष्य की पूर्ति अपेक्षाकृत अधिक तेजी से और सुचारू रूप में करवाते हैं। जब से मशीन का आविष्कार हुआ विज्ञान ने हमारी गतिमत्ता में निरन्तर तेजी की है।
विज्ञान के बुद्धिवाद ने तर्क को सर्वोपरि प्रतिष्ठित कर दिया। इसका हमारे चिन्तन पर व्यापक प्रभाव पड़ा। स्वर्ग और नरक जैसी अवधारणाएं डगमगाने लगी। वैज्ञानिकों के द्वारा विश्व का जो अनुसंधान किया गया उसमें ऊपर कहीं स्वर्ग जैसी चीज और नीचे नरक जैसी चीज उपलब्ध नहीं हुई। चन्द्रमा पर मनुष्य के पहुंच जाने से ऐसी अवधारणाएं चरमराने लगी कि चन्द्रमा कोई देवता है, जहां पितर निवास करते हैं। किसी कवि ने विज्ञान की प्रगति के आलोक में भी जहां कहीं कोई अंध-विश्वास शेष बच गये हैं, उन पर व्यंग्य करते हुए लिखा है
गोरा आदमी चन्द्रमा के वक्षस्थल पर लात भी मार आया
लेकिन बिल्ली हमारे रास्ते अब भी काटती है। चन्द्रमा पर मनुष्य का पहुंचना केवल वैज्ञानिक सिद्धान्तों से सम्भव नहीं था, वैज्ञानिक तकनीक का भी उसमें बहुत बड़ा हाथ है, यद्यपि उस तकनीक का विकास वैज्ञानिक सिद्धांत के बिना सम्भव नहीं है। जहां वैज्ञानिक सिद्धांतों ने हमारी चिन्तनशैली को बदला वहां वैज्ञानिक तकनीक ने हमारी जीवन-शैली को बदल दिया और इस प्रकार विज्ञान ने एक-देशीय परिवर्तन नहीं अपितु सर्वतोमुखी परिवर्तन लाया।
तुलसी प्रज्ञा
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