Book Title: Tulsi Prajna 1992 10 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ त्यां धर्म छ आज्ञानथी त्यां अधर्म छे एवं जाणी देव श्री अरहंत बारगुणे करी सहित पांच महा विदेह क्षेत्रनेविषे बिराजमान छ। तेमने देवकरी मानवा गुरु पांच मांहाव्रतना धारक पांच' सुमिते सुमिता त्रण गुप्तेगूप्ता तेने गुरु करी मानवा भरत क्षेत्रने विषे श्री माणेकलालजी स्वामि आद देइने तेरापंथीना साध साधवी। धर्म केवली भगवंतनो प्ररूप्यो अहिंसामां धर्म छे। व्रतमां धर्म छ। ते विषे आ चोपड़ीमां वरणव करयुं छे । जेउंने जोइए। ते मंगावी लेजो। आ ग्रंथ थी श्रद्धा आचार उलखाण थशे ने घणो जाणपणो थशे। कोइ प्रश्न पुछे तेने उत्तर देवाने थशे । कोइ लखावो तो रू० १५ मां पण लखावा ए नही। पण छपाणा बोततेथी शशता पड्याने ते ऊपर माहाराथी बनी तेवो मेहनत पण घणी करीने जाण्यु जे आपणा तेरापंथी मां घणो प्रशीद्ध पणु थाय घणा तेरापंथी श्रावकने उपियोग आवे तेमाटे शुद्ध करीने छपावी उ। बीजी अरज ए छे । आपणा तेरापंथी नो ग्रंथ काहाडवो होयतो मने । समाचार दीधाथी तेनी शलाथशे ने हुंथली तरफ लादणु बीदासर सुजाणगढ रतनगढ चुरू सरदारसेर मारवाड़ मेवाड माडवाजेपुर हरीआणा कछकाठीवाड गुजरात सुरत वगरे गोहतो तीआना शेठीआओए शला दीधी हमोने पका भरोसाहे गणामातबर दीपता गणा श्रावको पुजजीतां साधसाधवी नादर्सण करवा आवे तेने संसारसोभा अर्थे भाव भगती करे छे। ते सेठीआ ओनानाम मदददेवा वाला माहे छे जाणवा सवै ओलष्यो छे। सवैयो-गुण विना भेषकु मूल न मानत, जीव अजीव का कीया निवेडा । पुण्यपापकुं भिन्न भिन्नजानत, आश्रव कर्मकुं लेत उरेरा॥ आवता कर्म कुं संवर रोकत, निर्जरा कर्मकुंदेत विखेरा। बंधतो जीव कुं बांध कर राखत, सास्वता सुख ज्यूिं मोक्ष में देरा ॥ ऐसा घट प्रगट कियां तव, मेट्या भव जीवांरा मिथ्यात्व अंधेरा । निर्मल ज्ञान सु उद्योत कियो तब, एतो पंथ प्रभु तेरा इ तेरा॥" यह प्रस्तावना भी इसी बात को उजागर करती है कि विक्रमी संवत् १९५३ (ईसवी सन् १८९७) तक तेरापंथ-साहित्य का मुद्रण ना के बराबर था। हां यह बात समझ ली गई थी कि एक ग्रंथ को लिखाने में १५/- रुपये (उस समय की कीमत के) खर्च आता था और एक प्रति तैयार होती थी किन्तु मुद्रण से बहुत सी प्रतियां तैयार हो जाती और खर्च भी कम आता था । __ इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि तेरापंथी साहित्य के बहुविध प्रकाशन में मुंबई के बाद ओसवाल प्रेस, कलकत्ता का नाम आता है और तदुपरांत तेरापंथी महासभा, आदर्श साहित्य संघ, जैन विश्व भारती आदि प्रमुख संस्थाओं का । -परमेश्वर सोलंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 160