Book Title: Tulsi Prajna 1992 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ यह साहित्य, किन्तु प्रिन्टिग प्रेस के माध्यम से जनता में पहले पहल कब पहुंचा अथवा पहुंचना शुरू हुआ ? यह कहना कठिन है। इन पंक्तियों के लेखक ने मुम्बई की एक फर्म-खेतसी जीवराज की तरफ से रामभक्त प्रिटिंग प्रेस, मुंबई में छपी "श्री भोजे जसर्सायण" शीर्षक पुस्तक देखी है जो उसमें छपी इबारत मुजिब संवत् १९४३ में छपी होनी चाहिए और यह प्रकाशन ईसवी सन् के १८८० से शुरू दशक में मुद्रित प्रकाशनों में गिना जाना चाहिए। भीष चरित, भ्रमवीधसण, पडी कमण, नवपदार्थना ढाला, मूल अर्थ सहीत सूत्रना अध्यन-सुगडागनो छठो, उन्नाधेन नो त्रीजो तथा छुटी गाथाओ-इत्यादि ग्रन्थ और साध वंदना, पचीस बोलनो थोकड़ो, परदेसी राजानो रास, सोल सुपना, तेर बोलमु-जैसे छोटे-छोटे प्रकाशन भी इसी दशक में हुए हैं । गुजराती भाषा में छपे छोटे-छोटे ग्रन्थ -राम रास, धर्मसार, समकीतसार इत्याद भी इसी समय के हैं। ये सभी प्रकाशन, खेतसी जीवराज, वीनेचंद फकीरचंद, साहेबचंद ता थांनमल, सोभागचंद दोलतचंद, रतनचंद रूपचंद और सोभाचंद बागाणी सेठ सागरमलजी जैसे महानुभावों की मदद से संभव हुए। फर्म-खेतसी जीवराज के मालिक, संत दुलीचंद और उनकी संसार पक्षी बहिन सती पदमाजी के परिजनों में थे। संत दुलीचंद (पटेलावाद-पर्याय १९२१-१९४३) के पिता माणकचंद और माता मानीबाई भण्डारी थे । उन्होंने 'सुध सलेखणा' करके सं० १९४३ के कात्तिक मास को पटलावत ग्राम में मुक्ति पाई थी। . तेरापंथी कृत देवगुरुधर्मनी उलखाण-नंबर बोजो नामक पुस्तक 'निर्णय सागर' छापखाना में संवत् १९५३ माहा शुद ७ ने मोमे: फेबरवारी सने १८६७ को छपी। यह दूसरा प्रकाशन भी जयपुर के हुकमचंद खारड़ के पुत्र कस्तूरचंद और मारवाड़ी हेमराज निमाणी से शुद्ध कराके शाह खेतशी जीवराज ने ही मुद्रित कराया। इस दूसरे प्रकाशन की प्रस्तावना ऐतिहासिक महत्त्व की है, इसलिए यहां अविकल रूप में पुनः मुद्रित की जा रही है प्रस्तावना "मनुन्य जन्म आर्यक्षेत्र उतमकुल निरोगी काआ पुरी इद्धी पुरो आवषो सतगरुसंजोग सीधातनु सांभलवं सांभलीने श्रद्धवो श्रधीने तपजप बलप्राक्रम फोर्ववो अत्यंत दुर्लभ छ। तेपामीने देव गुरु धर्म ए त्रण रत्न अमुल्य छ । ते उलखीने धर्मते श्री जिनाज्ञामां छे । ते निरवद्य करणीनी साधु श्रावकने आज्ञाआपे पण सावधनी आपे नही। आने ज्यिां आज्ञाछे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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