Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[25 में तुम्हारे पिता आदित्यरजा राजा हुए। वे यम के कारागार में बन्दी थे। मैंने ही उन्हें वहां से मुक्त कर पुनः किष्किन्ध्या का राज्य दिया था यह सभी जानते हैं। अभी तुम उनके सिंहासन पर बैठे हो। अतः तुम्हारे लिए भी उचित है तुम वंश परम्परागत भाव से हमारी सेवा करो।'
(श्लोक १८९-१९५) दूत के मुंह से यह सुनकर गर्व रूपी अग्नि के लिए शमी वृक्ष तुल्य महामनस्वी बाली ने अविकृत आकृति रखे हुए गम्भीर स्वर में कहा
(श्लोक १९६) ____ 'हम दोनों के वंश में अखण्ड प्रीति का सम्बन्ध चला आ रहा है यह मैं जानता हूं। राक्षस और वानर वंश में वह आज तक तो अक्षुण्ण था। हमारे पूर्वज सुख-दुःख में एक दूसरे की रक्षा करते थे । इसके मूल में केवल स्नेह था, स्वामी-सेवक भाव नहीं था । दूत, सर्वज्ञ देव, साधु और सुगुरु इनके अतिरिक्त मैं और किसी को पूजनीय नहीं समझता। मेरे लिए तो केवल वे ही पूज्य हैं । आपके स्वामी के मन में ऐसा भाव क्यों उत्पन्न हुआ ? वे स्वयं को स्वामी और हमें सेवक कहकर आज तक चले आ रहे कुल क्रमागत स्नेह सम्बन्ध का खण्डन कर रहे हैं। फिर भी मैं मित्र कुल में उत्पन्न होकर और अपनी शक्ति को जानते हुए भी तुम्हारे स्वामी को क्षति नहीं पहुंचाऊँगा। कारण, मैं लोक निन्दा से डरता हूं। किन्तु, यदि वे मेरी कोई क्षति करने की चेष्टा करेंगे तो उसका प्रतिकार मैं अवश्य करूंगा। दूत, अब तुम जाओ। उनको उनकी शक्ति के अनुसार जो करना है करने को कहो।' (श्लोक १९७-२०३)
दूत ने लौटकर रावण से सारी बात कही। दूत की बात सुनकर रावण की क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो उठी । उसने तत्काल वृहद् सेना लेकर किष्किन्ध्या पर आक्रमण कर दिया । भुजबल शोभित बाली भी अपनी सेना लेकर रावण के सम्मुख आया। पराक्रमी वीर के लिए युद्ध का अतिथि सर्वदा ही प्रिय रहा है । उभय पक्ष में युद्ध आरम्भ हो गया। पाषाण के प्रतिरोध में पाषाण, वृक्ष के प्रतिरोध में वृक्ष, गदा के प्रतिरोध में गदा प्रयुक्त होने लगी। रथ गिरकर पापड़ की तरह चूर-चूर होने लगे। बड़े-बड़े हाथी मिट्टी के पिण्ड की तरह बिखरने लगे । घोड़े कद्दू की तरह स्थान-स्थान पर कटकर गिरने लगे और पैदल सेना चंचा घास के पुलिन्दों की तरह कटने