Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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रह सका। यह देखकर राम स्वयं युद्ध में जाने के लिए प्रस्तुत हए; किन्तु विभीषण उन्हें रोककर स्वय युद्धस्थल में पहुंचे। उन्हें देखकर रावण बोल उठा, 'अरे विभीषण ! तूने किसका आश्रय लिया है ? क्रोध से भरे मुझे युद्धस्थल में आते देखकर मेरे मुख के प्रथम ग्रास के रूप में मरने के लिए तुझे भेज दिया। शिकार के समय शिकारी जिस प्रकार वराह के सम्मुख कुत्ता भेज देता है उसी प्रकार अपने जीवन की रक्षा के लिए राम ने तुझे मेरे सामने भेजकर बुद्धिमानी का ही कार्य किया है । हे वत्स ! अभी भी तुझ पर मेरा स्नेह है। अत: तू शीघ्र यहाँ से चला जा। आज मैं राम और लक्ष्मण सहित समस्त वानर-सेना को विनष्ट करूंगा। एतदर्थ तू मरने वालों की संख्या में अपना नाम युक्त मत कर । तू सानन्द अपने स्थान को लौट जा। आज भी तेरी पीठ पर मेरा वरद हस्त है।'
(श्लोक १७९-१८५) रावण के ये वचन सुनकर विभीषण बोले, 'हे अग्रज ! तुम नहीं जानते राम क्रुद्ध होकर यमराज की भाँति तुम पर आक्रमण करने आ रहे थे। मैंने ही उन्हें बहाना बनाकर रोका है । तुम्हारे साथ युद्ध करने के बहाने मैं तुम्हें समझाने आया हूं। तुम अब भी मेरी बात मानकर सोता को छोड़ दो। हे अग्रज! मैं राम के पास न मृत्यु के भय से आया हूं, न राज्य के लोभ से। मैंने तो अपवाद के भय से उनकी शरण ली है। अतः सीता को छोड़करअपवाद और कलङ्क को छोड़ दो तो मैं भी राम का परित्याग कर तुम्हारे पास लौट आऊँगा।'
__ (श्लोक १८६-१८९) विभीषण की यह बात सुनकर रावण कुपित होकर बोला, 'हे दुर्बुद्धि, हे कायर ! तू क्या अब भी मुझे भय दिखा रहा है ? मैंने तो मात्र भ्रातृ-हत्या के भय से ऐसा कहा था। दूसरा कोई कारण नहीं था'-कहते हुए रावण ने धनुष पर टङ्कार की। 'मैं भी भ्रातृ-हत्या के भय से ही तुम्हें ऐसा कह रहा था। दूसरा कोई कारण नहीं था'-विभीषण ने भी धनुष पर टङ्कार की। तदुपरांत नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों को निक्षेप कर दोनों भाई उद्धततापूर्वक युद्ध करने लगे।
(श्लोक १९०-१९३) इसी समय कुम्भकर्ण, इन्द्रजीत एवं अन्य राक्षस भी यमराज के दूतों की तरह स्वामि-भक्ति से प्रेरित होकर वहां उपस्थित हो