Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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196] नहीं कर सकेंगे। कारण, गाड़ी ही यदि नष्ट हो जाए तो गणेश क्या करेगा ?'
(श्लोक २८२-२८३) यह सुनकर राम ने विशल्या का स्नान-जल लाने के लिए सुग्रीव, भामण्डल, हनुमान और अङ्गद को तत्काल भरत के निकट भेजा। वे विमान में बैठकर वायुवेग से अयोध्या जा पहुंचे । भरत प्रासाद की छत पर सोये हुए थे। उन्हें जगाने के लिए वे आकाश में स्थित होकर गीत गाने लगे। राज-कार्य के लिए राजा को किसी भी प्रकार जगाना उचित है। गीत के शब्दों को सुनकर भरत जाग गए। भामण्डल आदि ने जाकर उन्हें नमस्कार किया। भरत ने उनसे अकस्मात् रात्रि में आने का कारण पूछा। उन्होंने भी जो सत्य था वह सब कह सुनाया। आप्त-पुरुषों के सम्मुख कुछ भी छिपाना उचित नहीं होता। भरत कुछ देर तक तो चिन्ता करते रहे । तदुपरान्त उनके साथ विमान में बैठकर कौतुक-मङ्गल नगर गए।
(श्लोक २८४-२८८) भरत ने द्रोणमेघ के पास जाकर विशल्या के लिए याचना की। द्रोणमेघ ने अन्य एक हजार कन्याओं को विशल्या के साथ लक्ष्मण से विवाह करने के लिए प्रदान किया। सुग्रीवादि भरत को पुनः अयोध्या पहुंचा कर तत्काल विशल्या सहित लङ्का लौट आए ।
(श्लोक २८९-२९०) ये प्रज्वलित दीप युक्त विमान में बैठकर गए थे इसलिए उसके आलोक ने वानर-सैन्य में 'सूर्य उदय हो गया' का भय पैदा कर दिया; किन्तु उनके पहुंचते ही वह क्षोभ आनन्द में परिवर्तित हो गया।
(श्लोक २९१) भामण्डल ने तुरन्त विशल्या को लक्ष्मण के समीप उतारा । विशल्या ने लक्ष्मण का शरीर स्पर्श किया। स्पर्श मात्र से ही लक्ष्मण की देह से शक्ति उसी प्रकार निकल गई जिस प्रकार लकड़ी से सर्पिणी निकल जाती है। शक्ति जब निकल कर आकाश-पथ से जा रही थी तब हनुमान ने बाज जैसे पक्षी को पकड़ लेता है उसी प्रकार लपक कर उसे पकड़ लिया। शक्ति बोली-'मैं तो देव रूप हूं। इसमें मेरा जरा भी दोष नहीं है। मैं प्रज्ञप्ति विद्या की बहिन हूं। धरणेन्द्र ने मुझे रावण को दिया था। विशल्या के पूर्वभव के तपः-तेज को सहन न कर सकने के कारण मैं जा रही