Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अयोध्या ले चला। धरती और आकाश में वाद्ययन्त्र बज उठे । मयूर जिस प्रकार मेघ को देखता है उसी प्रकार पुरवासी अनिमेष नेत्रों से राम और लक्ष्मण को देखने लगे और उनकी स्तुति करने लगे। प्रसन्न बदन राम और लक्ष्मण को लोग सूर्य की भाँति अर्घ्य देने लगे। वे भी उसे स्वीकार करते हुए क्रमशः प्रासाद के निकट जा पहुंचे।
(श्लोक ८३-८६) सुहृदजनों के हृदय को आनन्दकारी राम-लक्ष्मण सहित पुष्पक विमान से उतर कर माताओं के महल में गए । माताओं ने उन्हें आशीर्वाद दिया। तदुपरान्त सीता, विशल्या आदि ने भी सासुओं के चरण स्पर्श किए। उन्होंने भी आशीर्वाद दिया कि तुम भी हम लोगों की तरह वीरपुत्रों की जन्मदात्री बनो।
(श्लोक ८७-९०) कौशल्या बार-बार लक्ष्मण का मस्तक सहलाकर कहने लगी, 'हे तात ! मैंने सौभाग्य से ही आज तुम्हें देखा है। मैं तो यही समझ रही हूं कि तुमने नवीन जन्म प्राप्त किया है। कारण, विदेश में तुम मृत्यु के मुख में जाकर पुनः विजय प्राप्त कर यहाँ लौटे हो। राम और सीता तुम्हारी सेवा के लिए ही वन में उस प्रकार का कष्ट सहन कर सके थे।'
(श्लोक ९१-९३) ___ लक्ष्मण सविनय बोले, 'माँ, वन में अग्रज राम पिता की भांति और सीता आपकी ही तरह मेरा लालन-पालन करते थे। अतः मैंने तो वन में सुखपूर्वक ही दिन व्यतीत किए; किन्तु मुझसे स्वेच्छाचारी और दुर्ललित दुष्टाचार के लिए राम की अन्य से शत्रुता हुई और देवी सीता का हरण हुआ। इस विषय में मैं अधिक क्या कहं ? राम और सीता पर जो विपत्ति आई उसका कारण मैं ही हूँ। किन्तु माँ, आपके आशीर्वाद से भद्र राम अब शत्ररूपी समुद्र का उल्लंघन कर परिवार सहित यहाँ सकुशल पहुंच गए
(श्लोक ९४-९६) ___ एक सेवक की तरह राम के निकट रहने की इच्छा वाले भरत ने नगर में वृहद उत्सव किया।
(श्लोक ९७) एक दिन भरत ने राम को प्रणाम कर कहा, 'हे आर्य, आप की आज्ञा से मैंने इतने दिनों तक राज्य किया है, अब आप उसे ग्रहण करें। इस राज्य को करने के लिए यदि मैं आप द्वारा विवश