Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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बहुत क्षण बीत गए, अब मुझे क्यों दुःखी कर रहे हो ? हे भाई ! इन दुर्जनों के सम्मुख कोप करना उचित नहीं है ।' (श्लोक १४५-१४८)
ऐसा कहकर राम लक्ष्मण को कन्धे पर उठाकर अन्यत्र चले गए। कभी स्नानागार में जाकर लक्ष्मण को स्नान कराते, कभी उनकी देह पर चन्दन का लेप करते, कभी दिव्य आहार लाकर उनके सम्मुख रखते, कभी उन्हें गोद में सुलाकर उनका मस्तक चूमते, कभी उन्हें शैय्या पर सुलाकर वस्त्र द्वारा आच्छादित कर देते। कभी उन्हें पुचकारते, कभी स्वयं ही उसका प्रत्युत्तर देते । कभी स्वयं ही संवाहक की भाँति उनकी देह पर तेल-मर्दन करते । इस प्रकार स्नेह में उन्मत्त होकर वे सब काम भूल गए। ऐसी उन्मत्तता की स्थिति ज्ञात कर, इन्द्रजीत और सुन्द राक्षस के पुत्र और अन्यान्य खेचर राम को मारने की इच्छा से उनके निकट पहुंचे। कपटी शिकारी, सिंह जब गुफा में सोया हुआ रहता है तो उसे घेर लेते हैं उसी प्रकार अयोध्या में जब उन्मत्त राम वास कर रहे थे तब उन लोगों ने आकर अयोध्या को वृहद सेना द्वारा घेर लिया। यह देखकर राम ने लक्ष्मण को गोद में लेकर वज्रावर्त धनुष की टङ्कार दी जो कि संवर्त प्रलय की सूचना दे रही थी।
(श्लोक १४८-१५६) उसी समय महेन्द्र देवलोक के देव जटायु का आसन कम्पित हुआ। वह देवों सहित अयोध्या आया। उसे देखकर इन्द्रजीत के पुत्रादि देव अभी भी राम के पक्ष में हैं, समझकर भाग गए। तत्पश्चात् वे यही सोचकर उदास हो गए कि देव आज भी राम का पक्ष ले रहे हैं। राक्षसों की हत्या करने वाला विभीषण अभी भी राम के साथ है। भय व लज्जा से उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। वे गह-त्याग कर अतिवेग मुनि से दीक्षित हो गए।
(श्लोक १५७-१६०) जटायु देव राम के पास आए और उन्हें बोध देने के लिए एक शुष्क वृक्ष को बार-बार सींचने लगे। पत्थर पर खाद देकर उस पर कमल बोने लगे। मिट्टी में असमय बीज बिखेरने लगे। घानी में बालू डाल कर उससे तेल निकालने का प्रयास करने लगे। इस प्रकार राम के सामने वे सभी असाध्य कर्मों को साध्य करने का प्रयास करने लगे।
(श्लोक १६१-१६३)