Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सीता बोली, 'हे वत्स, शुद्धि प्राप्त करने के पश्चात् ही मैं नगर में प्रवेश कर सकूगी क्योंकि ऐसा नहीं होने पर निन्दा कभी शान्त नहीं होगी।'
(श्लोक १८३) सीता का यह दृढ़ निश्चय उन्होंने राम को जाकर सुनाया। राम वहां आए और सीता से न्यायनिष्ठुर बचन बोले, 'यदि तुम रावण के वहाँ पवित्र रही, रावण ने तुम्हें अपवित्र नहीं किया तो अपनी शुद्धता के लिए सबके सम्मुख दिव्य करो।'
(श्लोक १८४-१८५) सीता मृदु हँसती हुई बोली, 'आप जैसा विचक्षण और कौन है जो दोषी है कि नहीं यह जाने बिना ही अभियुक्त को परित्याग कर वन में भेज दिया। यह भी आपकी विचक्षणता है जो दण्ड देकर आप उसकी परीक्षा लेना चाह रहे हैं। खैर, तो भी मैं उसके लिए प्रस्तुत हूं।'
(श्लोक १८६-१८७) सीता की बात सुनकर राम म्लान मुख से बोले, 'हे भद्र, मैं जानता हूं तुम सर्वथा निर्दोष हो। फिर भी लोगों के मन में जो द्वेषभाव, उत्पन्न हुआ है उसके निराकरण की आवश्यकता है।'
(श्लोक १८८) सीता बोली, 'मैं पाँचों प्रकार से दिव्य करने को प्रस्तुत हूं। कहें तो अग्नि में प्रवेश करू, कहें तो अभिमन्त्रित तन्दुल भक्षण करूं, कहें तो कच्चे धागे से बँधी तराज में बैठ जाऊँ, कहें तो पिघलाया हुआ सीसा पान करूं या जीभ से शस्त्र को धार की ओर से उठाऊँ।'
(श्लोक १८९-१९०) उसी समय अन्तरिक्ष स्थिर नारद और सिद्धार्थ और भूमिस्थ लोक समूह कोलाहल कर बोल उठे- 'हे राघव, सीता वास्तव में सती, सती, महासती है। इसमें लेशमात्र भी सन्देह करना उचित नहीं है।'
(श्लोक १९१-१९२) राम लोगों के मुख से यह बात सुनकर उन्हें सम्बोधित करते हुए बोले, 'आप लोग सर्वथा मर्यादाविहीन हैं। मेरे हृदय में संदेह आप लोगों के कारण ही उतान्न हआ। पहले आप लोग ही सीता को दूषित बतला रहे थे और आज उसे सती बतला रहे हैं। हो सकता है यहाँ से जाने के बाद आप लोग अन्य कुछ बोलना प्रारम्भ कर देंगे। बोलिए, पहले सीता किस प्रकार दूषित थी और आज