Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[207 इस प्रकार विभीषण की बात न मानकर राम ने उसी समय प्रसन्नतापूर्वक विभीषण को सिंहासन पर अभिषिक्त कर दिया। तदुपरान्त इन्द्र जैसे सुधर्मा सभा में आते हैं उसी प्रकार राम, सीता, लक्ष्मण और सुग्रीवादि सहित रावण के प्रासाद में गए।
(श्लोक ५३-५५) राम और लक्ष्मण ने सिंहोदर आदि की जिन कन्याओं से विवाह करना स्वीकार किया था उन्हें विद्याधरों द्वारा लङ्का में बुलवाया और अपनी-अपनी प्रतिश्रुति के अनुसार दोनों ने उन कन्याओं के साथ विवाह किया। खेचरियों ने मङ्गल गीत गाए । सुग्रीव और विभीषणादि सेवित राम-लक्ष्मण छह वर्षों तक सुखोपभोग करते हुए लङ्का में सानन्द रहे। उसी समय विध्यस्थली में इन्द्रजीत और मेघवाहन ने सिद्धि पद प्राप्त किया। अतः वहाँ मेघरथ नामक तीर्थ स्थापित हुआ। कुम्भकर्ण ने नर्मदा नदी के तट पर मोक्ष प्राप्त किया। वहाँ पृष्ठरक्षित नामक तीर्थ स्थापित हुआ।
(श्लोक ५६-६०) उधर अयोध्या में राम और लक्ष्मण की माताएँ इनका कोई संवाद न पाने से चिन्तित हो रही थी। एक दिन धातकी खण्ड से नारद मुनि वहाँ पहुंचे। रानियों ने भक्तिपूर्वक उनका आदर सत्कार किया। कौशल्या ने कहा, 'मेरा पुत्र राम और लक्ष्मण पुत्रवधू सीता सहित पिता से आदेश लेकर वन गए थे। वहाँ रावण सीता को हरण कर ले गया। एतदर्थ राम-लक्ष्मण लङ्का गए । वहाँ लक्ष्मण युद्ध में शक्ति के आघात से मूच्छित हो गये । शक्तिशल्य को दूर करने के लिए राम के योद्धागण विशल्या को लङ्का ले गए थे। इसके बाद क्या हुआ हम नहीं जानते । नहीं मालूम लक्ष्मण जीवित हुए या नहीं।'
- (श्लोक ६१-६५) ऐसा कहकर कौशल्या 'हा वत्स ! हा वत्स !' कहती हुई क्रन्दन करने लगी। नारद ने उन्हें सान्त्वना देकर कहा, आप दुःखी मत होइए। मैं राम के पास जाकर उन्हें लेकर यहाँ आऊँगा।'
(श्लोक ६६-६७), इस प्रकार उन्हें सान्त्वना देकर नारद आकाश-पथ से राम के निकट लंका पहुंचे। राम ने सत्कारपूर्वक उन्हें बैठाया और आने का कारण पूछा। नारद ने उन्हें उनकी माँ का दुःख सुनाया ।