Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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के घर के अतिरिक्त स्त्री का अन्य घर भाई का घर ही होता है । राम ने लोकोपवाद से तुम्हारा परित्याग किया है, स्वेच्छा से नहीं। इसलिए मुझे लगता है वे भी इस कार्य के लिए पश्चात्ताप करते हुए तुम्हारी ही तरह कष्ट पा रहे हैं। विरहातुर राम चक्रवाक पक्षी की तरह व्याकुल होकर कुछ ही दिनों में तुम्हें खोजने निकलेंगे।'
(श्लोक १२-१६) सीता ने बज्रजंघ के साथ पुण्डरीकपुर जाना स्वीकार कर लिया। उस निर्विकारी राजा ने सीता के लिए पालकी मंगवाई । सीता उसमें बैठकर मानो मिथिलापुरी जा रही हो इस प्रकार पुण्डरीकपुर जा रही थी। बज्रजंघ ने उसके निवास के लिए पृथक घर दिया। वह वहाँ धर्मध्यान कर अपना समय व्यतीत करने लगी।
(श्लोक १७-१८) सेनापति कृतान्तवदन अयोध्या पहुंचकर राम के पास जाकर बोले, 'मैं सीता को सिंहनिनाद नामक वन में छोड़ आया हूं। वहाँ वे बार-बार मूच्छित हो रही थीं। जब भी चेतना लौटती करुण स्वर में रोने लगतीं। अन्त में सामान्य धैर्य धारण कर उन्होंने मुझे आपको यह कहने के लिए कहा है. 'किसी भी नीतिशास्त्र में किसी भी विधान में या किसी भी देश में मात्र एक पक्ष की बात सुनने मात्र से ही बिना खोज-खबर लिए अन्य पक्ष को अपराधी स्थिर कर कभी दण्ड दिया जाता है ? आप सर्वदा विवेक पूर्वक कार्य करते हैं फिर भी यह कार्य आपने बिना विचारे ही किया है। मैं तो अपने प्रति होने वाले अविचार को अपने कर्मों का ही कारण मानती हूं। आप तो सर्वदा निर्दोषी ही हैं। फिर भी स्वामी एक बात कहती हूं-मैं निर्दोष हूं। आपने लोगों की बात मानकर मेरा परित्याग कर दिया; किन्तु इस प्रकार मिथ्यादृष्टि लोगों की बात मानकर जैन धर्म का परित्याग मत करिएगा।' ऐसा कहकर वे पूनः मूच्छित हो गईं। कुछ क्षणों पश्चात् पूनः संज्ञा लौटने पर वे पुनः बोल उठी-'हाय मेरे बिना राम कैसे जीवित रहेंगे? हाय, मैं मारी गई।
(श्लोक १९-२४) कृतान्तवदन के मुख से सीता द्वारा भेजा संवाद सुनकर राम मूच्छित हो गए। उसी समय लक्ष्मण ससंभ्रम वहाँ आए और उन पर चन्दन-जल के छींटे डाले। ज्ञान आने पर राम बोल उठे, 'वह