Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 244
________________ [235 इस स्थल सैन्य को विनष्ट न कर दें । ( श्लोक ११२ - ११३ ) तदुपरान्त अत्यन्त रोमांच से जिनके कवच उच्छ्वसित हो गए थे ऐसे महापराक्रमी दोनों राजकुमार युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गए । निःशङ्क युद्ध करते हुए सुग्रीवादि ने जब भामण्डल को अपने सम्मुख देखा तो उनसे पूछा - 'ये दोनों कुमार कौन हैं ?' भामण्डल ने कहा, 'ये राम के पुत्र हैं ।' यह सुनकर सुग्रीवादि खेचर तुरन्त सीता के पास गए, उन्हें प्रणाम कर नीचे बैठ गए । ( श्लोक ११४- ११६) प्रलयकाल के समुद्र की तरह उद्भ्रान्त दुर्द्धर और महापराक्रमी लवण और अंकुश ने क्षण मात्र में राम की सेना को भग्न कर डाला | वन-सिंह की भाँति वे जहाँ भी गए उधर ही रथी, अश्वारोही एवं गजारोही कोई भी हाथ में अस्त्र लिए उनके सम्मुख खड़ा नहीं रह सका। इस प्रकार राम की सेना को छिन्न-भिन्न करते हुए अस्खलित गति से वे राम और लक्ष्मण से युद्ध करने लगे । उन्हें देखकर राम और लक्ष्मण परस्पर कहने लगे, 'हमारे शत्रु रूप में ये दोनों कुमार कौन हैं ?" ( श्लोक ११७ - १२० ) राम बोले, 'इन दोनों कुमारों के प्रति मन में स्वाभाविक स्नेह उत्पन्न हो रहा है । इन्हें गले लगाने की इच्छा हो रही है । मन को विवश कर किस प्रकार इनके प्रति वैर भाव उत्पन्न करूँ ? समझ नहीं पा रहा हूं कि उनके साथ कैसा व्यवहार करू ? ' ( श्लोक १२१ ) रथ में बैठे राम जब इस प्रकार लक्ष्मण से कह रहे थे उसी समय लवण और अंकुश उनके रथ के सामने जा खड़े हुए। अंकुश बोला, 'वीरयुद्ध में हमारी बड़ी श्रद्धा है । जगत् के लिए अजेय रावण को आपने पराजित किया है । अतः आपको देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई । हे राम और लक्ष्मण ! आपकी जिस युद्ध - इच्छा को रावण पूरी नहीं कर सका उसको हम पूर्ण करेंगे ।' (श्लोक १२२-१२४) तदुपरान्त राम, लक्ष्मण, लवण और अंकुश ने अपने-अपने धनुष पर भयंकर ध्वनियुक्त टङ्कार की । कृतान्त सारथी राम के रथ को और वज्रजङ्घ सारथी लवण के रथ को एक-दूसरे के सम्मुख ले आए । उसी प्रकार विराध सारथी ने लक्ष्मण के रथ को

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