Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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शरणागत विभीषण यदि इस शक्ति से निहत हो गया तो यह ठीक नहीं होगा । लोग हमें आश्रित घातक कहकर धिक्कारेंगे।' राम की बात सुनकर लक्ष्मण विभीषण के सम्मुख जाकर खड़े हो गए । गरुड़ पर चढ़े लक्ष्मण को आगे आते देखकर रावण बोला - 'हे लक्ष्मण ! मैंने यह शक्ति तुझे मारने के लिए प्रस्तुत नहीं की है । अतः अन्य की मृत्यु के मध्य आकर स्वयं मत मर - अन्यथा तू स्वयं मर जा । कारण, तुझे तो मैं मारूंगा ही । तेरा आश्रित यह विभीषण, बेचारा भिखारी की भाँति मेरे सम्मुख खड़ा है ।'
श्लोक २१२-२१५ )
तत्पश्चात् उसने उत्पात वज्रतुल्य उस शक्ति से लक्ष्मण पर प्रहार किया । उस शक्ति को लक्ष्मण की ओर आते देखकर सुग्रीव, हनुमान, भामण्डल आदि वीरों ने अपने विभिन्न प्रकार के अस्त्रों द्वारा उसे रोकना चाहा; किन्तु वह शक्ति सभी की अवज्ञा कर निर्विघ्न रूप में जिस प्रकार उन्मत्त हाथी अंकुश से नहीं रुकता उसी भाँति समुद्र के बड़वानल की तरह प्रज्वलित होकर लक्ष्मण के हृदय पर जा लगी। उसके आघात से लक्ष्मण मूच्छित होकर गिर पड़े । वानर सेना में चारों ओर हाहाकार मच गया ।
( श्लोक २१६-२१९)
राम क्रुद्ध होकर पंचानन रथ में बैठकर रावण को मारने की इच्छा से युद्ध करने लगे । मुहूर्त भर में उन्होंने रावण के रथ को भग्न कर दिया । तब रावण अन्य रथ पर चढ़ा । जगत् में अद्वितीय वीर राम ने इस प्रकार पाँच-पाँच बार रावण के रथ को भग्न कर डाला । तब रावण ने सोचा- राम तो अनुज वियोग में स्वयं ही मर जाएगा । क्यों व्यर्थ ही मैं युद्ध करू । ऐसा सोचकर वह लङ्का लौट गया । तब शोकाकुल राम, लक्ष्मण के पास आए । उसी समय सूर्य अस्त हो गया । मानो राम के शोक से आतुर होकर वह आकाश में रह नहीं पाया ।
(श्लोक २२०-२२४)
लक्ष्मण को मूच्छित देखकर राम भी व्याकुल बने अचेत होकर गिर पड़े । सुग्रीवादि ने आकर राम पर चन्दन जल के छींटे डाले । फलतः राम की संज्ञा लौटी। राम उठे और लक्ष्मण के पास जाकर बैठ गए और इस प्रकार विलाप करने लगे, 'हे वत्स, बताओ तुम्हें क्या कष्ट हुआ है ? तुमने क्यों मौन धारण कर रखा