Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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व्रतधारी स्वामी को नगर से निकाल दिया है तो वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगी । सुकोशल ने उससे रोने का कारण पूछा। उसने वाष्परुद्ध कण्ठ से उत्तर दिया, 'हे वत्स, तुम जब छोटे थे तब तुम्हारे पिता ने तुम्हें सिंहासन पर बैठाकर दीक्षा ले ली थी। वे अभी भिक्षा के लिए इस नगर में आए थे । उन्हें देखकर शायद तुम भी दीक्षा ले बैठो इसी भय से तुम्हारी माँ ने उन्हें नगर से निकलवा दिया है। उसी दुःख में मैं रो रही हूं । ( श्लोक ४४-४७) धाय माँ की बात सुनकर सुकोशल संसार से विरक्त हो गया और उसने उसी समय अपने पिता कीर्तिधर के निकट जाकर दीक्षा के लिए प्रार्थना की । ( श्लोक ४८ ) उसकी पत्नी चित्रमाला उस समय गर्भवती थी । वह बोली, 'हे स्वामी, इस राज्य का परित्याग कर पृथ्वी को आपके लिए उचित नहीं है ।'
सुकोशल बोले, 'तुम्हारे गर्भ में जो पुत्र है दे रहा हूं । ऐसे उदाहरण अतीत में भी है ।'
अनाथ कर देना ( श्लोक ४९ ) उसे मैं सिंहासन ( श्लोक ५० )
ऐसा कहकर सभी को सान्त्वना देकर सुकोशल ने पिता से दीक्षा ग्रहण ली और तपस्या में लीन हो गए । ममता एवं कषाय रहित पिता पुत्र दोनों महामुनि पृथ्वी को पवित्र करते हुए एक साथ विहार करने लगे । ( श्लोक ५१-५२ ) पुत्र वियोग से कातर सहदेवी आर्तध्यान करती हुई मृत्यु को प्राप्त हुई और उसने गिरि कन्दरा में व्याघ्री रूप से जन्म ग्रहण किया । ( श्लोक ५३ ) मन को दमन करने वाले देह से भी निःस्पृह और स्वाध्याय ध्यान में तत्पर कीर्तिधर और सुकोशल मुनि चातुर्मास व्यतीत करने के लिए एक गिरि कन्दरा में जाकर प्रतिमा धारण कर अवस्थित हो गए । चातुर्मास शेष होने पर पारने के लिए जब वे गिरि कन्दरा से निकले तो पथ पर यमदूत-सी उसी व्याघ्री को देखा । उन्हें देखते ही व्याघ्री मुँह फैलाकर उनकी ओर दौड़ी । दुहृद व सुहृद जनों का दूर से आना समान ही होता है । ( श्लोक ५४-५७) व्याघ्री उनकी ओर आ रही है देखकर दोनों कायोत्सर्ग कर धर्म - ध्यान में लीन हो गए । वह व्याघ्री प्रथम तो विद्युत की भांति सुकोशल मुनि पर गिरी। दूर से दौड़कर आक्रमण करने के कारण