Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कुम्भकर्ण बानर सेना को ढकने के लिए धूल वृष्टि कर रहा हो । तदुपरान्त बाली के अनुज सुग्रीव ने कुम्भकर्ण पर विद्युदस्त निक्षेप किया । उसे विफल करने के लिए कुम्भकर्ण ने भी कितने ही अस्त्र फेंकें; किन्तु उसका कोई फल नहीं निकला । कल्पान्त काल की तरह वह कुम्भकर्ण पर आकर गिरा और उसे जमीन पर गिरा कर मूच्छित कर दिया । ( श्लोक १३२ - १३८) अपने भाई कुम्भकर्ण को मूच्छित होते देखकर रावण अत्यन्त क्रुद्ध हो गया । भृकुटी ताकने के कारण वह बड़ा भयङ्कर लगने लगा । रणभूमि की ओर उसे जाते देखकर लगा जैसे यमराज चलकर आ रहा हो। उसी समय इन्द्रजीत आकर उससे बोला, 'पिताजी, आपके सम्मुख तो यम, कुबेर, वरुण और इन्द्र की भी शक्ति नहीं है जो खड़े रह सकें, बेचारे इन बानरों की तो बात ही क्या है ? अतः हे देव, आप अभी न जाएँ। मैं जाकर इस बन्दर को जिस प्रकार थप्पड़ से मच्छर को मारा जाता है उसी प्रकार मार डालता हूं ।' ( श्लोक १३९ - १४१) इस प्रकार रावण को निरस्त कर महामानी इन्द्रजीत महापराक्रम दिखाता हुआ युद्ध क्षेत्र की ओर बढ़ा। उस पराक्रमी वीर के युद्ध क्षेत्र में आते ही बानर सेना उसी प्रकार रणस्थल का परित्याग कर भागने लगी जिस प्रकार साँप के आने पर मेंढ़क सरोवर को छोड़ जाते हैं । बानरों को भागते देखकर इन्द्रजीत बोला, 'बानरो, खड़े रहो, व्यर्थ में डरो मत। जो युद्ध नहीं करता मैं उसकी हत्या कदापि नहीं करता । मैं रावण का पुत्र हूं । हनुमान और सुग्रीव कहां है ? उन्हें भी जाने दो, शत्रुता करने वाले राम-लक्ष्मण कहां है ? ( श्लोक १४२ - १४५) इस प्रकार गर्व से भरे क्रोध से लाल नेत्र किए इन्द्रजीत ने युद्ध के लिए सुग्रीव का आह्वान किया, जिस प्रकार अष्टापद - अष्टापद में युद्ध होता है उसी प्रकार भामण्डल भी इन्द्रजीत के भाई मेघवाहन के साथ युद्ध करने लगा । त्रिलोक के लिए भयङ्कर परस्पर प्रहारकारी वे ऐसे लग रहे थे मानो चारों दिग्गज या चार समुद्र हों। उनके स्थों की तीव्र गति से पृथ्वी कांपने लगी, पर्वत हिलने लगे और महासागर क्षुब्ध हो उठा। अति-हस्तलाघव से और अनाकुलता से वे कब धनुष पर बाण रखते और छोड़ देते