Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कर अत्यन्त स्नेहवश दशरथ भी बार-बार मूच्छित होने लगे ।
(श्लोक ४४३) राम वहाँ से निकल कर माँ कौशल्या के पास जाकर बोले, 'माँ, मैं जैसा तुम्हारा पुत्र हूं, भरत भी वैसा ही तुम्हारा पुत्र है । अपनी प्रतिज्ञा सत्य करने के लिए पिताजी ने उसे राज्य दिया है। किन्तु मैं यदि यहाँ रहूंगा तो वह राज्य ग्रहण नहीं करेगा। इसलिए मेरा वन जाना ही उचित है। आप मेरे वियोग में कातर मत होइएगा।'
____ श्लोक ४४४-४४६) राम की बात सुनकर कौशल्या मूच्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी। दासियों ने चन्दन जल के छींटे देकर उन्हें स्वस्थ किया। तब वे बोली, 'किसने मुझे स्वस्थ किया ? किसने मुझे बचाया ? मेरी सुखपूर्वक मृत्यु के लिए तो मूर्छा ही ठीक थी। क्योंकि जीवित रहकर मैं राम का विरह कैसे सह सकूगी ? अरे कौशल्या, तेरे पति दीक्षित हो रहे हैं, तेरा पुत्र वन जा रहा है, यह सुनकर भी तेरी छाती नहीं फट रही है ? लगता है वह वज्र की बनी हुई है।'
(श्लोक ४४७-४४९) तब राम माँ को सान्त्वना देकर बोले, 'माँ मेरे पिताजी की पत्नी होकर आप साधारण स्त्री की तरह यह क्या कह रही हैं ? सिंहनी-शावक वन में अकेला ही विचरण करता है फिर भी सिंहनी स्वस्थ रहती है, कभी भी विचलित नहीं होती। मां, पिताजी द्वारा दिया गया वरदान पितृऋण की भाँति होता है। उस ऋण से उन्हें मुक्त करना क्या मेरा कर्तव्य नहीं है ? यदि मैं यहाँ रहं, भरत राज्य न ले तब पिताजी जिस प्रकार ऋणमुक्त होंगे?'
(श्लोक ४५०-४५२) इस प्रकार युक्तियुक्त वाक्यों से कौशल्या को समझाकर और अन्य माताओं को प्रणाम कर राम अयोध्यापुरी से निकल गए।
(श्लोक ४५३) सीता तब दूर से राजा दशरथ को प्रणाम कर कौशल्या के पास गई और राम के साथ वन जाने की अनुमति मांगी।
(श्लोक ४५४) तब कौशल्या पुत्री की तरह उसे अपने गोद में बैठाकर और उष्ण अश्रुजल से उसे सिंचित करती हुई बोली, 'वत्से, विनीत