Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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खोज में चारों ओर विद्याधर योद्धाओं को भेजा । उनके लौट आने तक क्रोधाग्नि में प्रज्वलित होते हुए भी बार-बार निःश्वास फेंकते हुए और ओष्ठ दंशन करते हुए राम और लक्ष्मण उसी वन में अवस्थित रहे । ( श्लोक ४६-४७ )
विराध द्वारा भेजे हुए विद्याधर बहुत दूर उन्हें सीता का कोई समाचार प्राप्त नहीं हुआ सिर झुकाए राम के सम्मुख खड़े हो गए ।
तक गए; किन्तु । अतः वे लौटकर
( श्लोक ४८ )
उन्हें नतमस्तक देखकर राम बोले, 'हे योद्धागण, स्वामी के कार्य को सम्पादन करने में तुम लोगों ने यथाशक्ति प्रयास किया है; किन्तु सीता को नहीं खोज सके, इसमें तुम्हारा क्या दोष है । जब दैव ही विमुख हैं तब तुम या अन्य कोई क्या कर सकता है ।
( श्लोक ४९-५० ) विराध बोला, 'प्रभु, आप खेद न करें कारण खेद नहीं करना ही लक्ष्मी का कारण है । आपकी सेवा करने के लिए आपका यह सेवक उपस्थित है | अतः मुझे पाताल लङ्का में प्रवेश करवाने के लिए आप लोग आज ही चलें । वहां से सीता सन्धान सहजता से हो सकेगा ।' तब राम-लक्ष्मण विराध और उसके सैन्यदल के साथ पाताल लङ्का में गए। वहां शत्रुहन्ता खर का पुत्र सुन्द वृहद् सेना लेकर युद्ध करने के लिए आया । बहुत देर तक वह विरोधी विराध के साथ युद्ध करता रहा । तदुपरान्त लक्ष्मण को युद्ध करने आते देखकर चन्द्रनखा के कथन पर वह युद्ध का परित्याग कर लङ्का में रावण की शरण में चला गया । राम और लक्ष्मण ने पाताल लङ्का में प्रवेश कर विराध को उसके पितृ सिंहासन पर बैठाया । तदुपरांत राम और लक्ष्मण खर के प्रासाद में और विराध युवराज की भांति सुन्द के प्रासाद में रहने लगा । ( श्लोक ५१-५८)
इधर सुग्रीव की पत्नी तारा का अभिलाषी सहसगति जो कि बहुत दिनों से हिमालय की गुफा में विद्या साधना कर रहा था उसको प्रतारिणी विद्या सिद्ध हो गई । उसी विद्या के द्वारा कामरूपी देवों की तरह इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ वह सुग्रीव का रूप धारण कर आकाश में द्वितीय सूर्य उदय हुआ हो इस प्रकार किष्किन्ध्या नगर में गया । सुग्रीव जब विनोदन के लिए, बाहर उद्यान में गया उसी समय उसने प्रासाद में प्रवेश