Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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के साथ सैन्य सहित युद्ध को प्रस्तुत हुआ; किन्तु लक्ष्मण ने जिस प्रकार दावानल यूथ सहित गजेन्द्र को विनष्ट कर देता है उसी प्रकार अल्प समय में ही उसे विनष्ट कर डाला। (श्लोक २७-३२)
फिर विराध को लेकर लक्ष्मण लौटे। उसी समय उनका बायां नेत्र फड़कने लगा। अत: आर्या सीता और राम के लिए उनके मन में अशुभ शङ्काएँ उठने लगीं। बहुत दूर जाने पर उन्होंने राम को अकेले एक वृक्ष के नीचे बैठे देखा। इससे उनके मन में अत्यन्त खेद उत्पन्न हुआ। वे राम के सम्मुख पहुंचे; किन्तु राम उन्हें देख न सके । वे उस समय विरहकातर होकर आकाश की
ओर मुख किए बोल रहे थे, हे वन देवता, मैंने समस्त वन का कण-कण छान मारा; किन्तु कहीं मैंने सीता को नहीं पाया। यदि तुमने उसे देखा हो तो बताओ। भूत-प्रेत और शिकारी श्वापदपूर्ण इस भयङ्कर वन में सीता को अकेला छोड़कर मैं लक्ष्मण के पास गया और हजारों राक्षस योद्धाओं के मध्य लक्ष्मण को अकेला छोड़ कर पुनः यहां लौट आया। हाय मुझ-से दुर्बुद्धि की बुद्धि भी कैसी है ? हे वत्स लक्ष्मण, तुम्हें उस रण संकट में अकेला छोड़कर मैं किस प्रकार लौट आया ?' ऐसा कहते-कहते राम मूच्छित होकर पुनः गिर पड़े। उस समय उनके दुःख से दुःखी होकर पशु-पक्षी भी रोने लगे और उस महावीर की और देखने लगे। (श्लोक ३३-४०)
लक्ष्मण बोले, 'आर्य, यह आप क्या कर रहे हैं ? यह रहा भापका अनुज लक्ष्मण जो कि समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर आपके पास लौट आया है। लक्ष्मण की बात सुनकर अमृत सिंचन से जिस प्रकार मरणासन की चेतना लौट आती है उसी भांति राम की चेतना लौटी। उन्होंने नेत्र खोले । लक्ष्मण को सामने खड़े देखकर उन्हें आलिंगन में ले लिया। लक्ष्मण अश्रु प्रवाहित करते हुए बोले, 'हे आर्य, जानकी का हरण करने के लिए ही किसी ने सिंहनाद किया था; किन्तु कोई चिन्ता नहीं, मैं उस दुष्ट के प्राणों सहित जानकी को लौटा लाऊँगा। अतः चलिए हम उन्हें खोजने का प्रयास करें; किन्तु उसके पूर्व इस विराध को उसका पाताल लङ्का का राज्य लौटा देना होगा। कारण युद्ध करने के समय मैंने इसे यह वचन दिया था।'
(श्लोक ४१-४५) उन्हें प्रसन्न करने के लिए विराध ने उसी समय सीता की