Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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निपुण व्यक्ति भी उनकी शक्ति का परिमाप करने में असमर्थ हो गए । अन्त में अपने पक्ष के योद्धाओं को मुख ताकते देखकर नल लज्जित हुए और साथ ही क्रोध से उद्दीप्त होकर तत्काल अव्याकुल रूप में क्षुरप्र तीर द्वारा हस्त का मस्तक काट डाला। ठीक उसी समय नील ने भी प्रहस्त को मार डाला । देवों ने हर्षित होकर आकाश से नल और नील पर पुष्प वृष्टि की । ( श्लोक ७५-८० )
हस्त और प्रहस्त की मृत्यु से रावणपक्षीय वीर क्रुद्ध हो उठे । उनमें मारीच, सिंहजघन, स्वयम्भू, सारण, शुक, चन्द्र, अर्क, उद्दाम, वीभत्स, कामाक्ष, मकर, ज्वर, गम्भीर, सिंहरथ और अश्वरथ आदि योद्धा युद्ध के लिए आगे आए। मदनकुमार, संताप, प्रथित, आक्रोश, नन्दन, दुरित, अनध, पुष्पास्त्र, विघ्न और प्रीतिकर आदि वानर वीर उनके एक-एक व्यक्ति के साथ युद्ध करने लगे। कभी ऊपर उछलकर, कभी जमीन पर गिरकर मुर्गे जिस प्रकार लड़ाई करते हैं उसी प्रकार वे युद्ध करने लगे । इस भांति बहुत देर तक युद्ध होता रहा । मारीच राक्षस सन्ताप बन्दर पर, नन्दन बन्दर ज्वर राक्षस पर उद्दाम राक्षस विघ्न बन्दर पर, दुरित बन्दर शुक्र राक्षस पर और सिंहजघन राक्षस प्रथित बन्दर पर प्रहार कर आहत करने लगे। उसी समय सूर्य हस्त हो गया । अतः राम और रावण की सेना ने युद्ध रोक दिया और अपनेअपने पक्ष के मृत और आहतों को खोजने लगे ( श्लोक ८१-८७ ) रात व्यतीत हुई । सूर्य उदय हुआ । सेना के साथ जिस प्रकार युद्ध करने जाती है उसी प्रकार राक्षस योद्धा राम के योद्धाओं के साथ युद्ध करने लगे । राक्षस सेना के मध्य भाग में हाथी के हौदे पर बैठकर रावण स्व-सेना को संचालित करने आया । वह मेरु-सा प्रतीत हो रहा था । क्रोध के कारण उसके नेत्रों से अग्नि स्फुलिंग से निकल रहे थे । ऐसा लग रहा था मानो वह दिक् समूहों को भस्म कर देना चाह रहा हो । विविध अस्त्रों से सज्जित रावण यमराज से भी अधिक भयङ्कर लग रहा था । इन्द्र की भांति अपने प्रत्येक सेनापति पर दृष्टि रखकर और शत्रु को तृण समान समझता हुआ रावण युद्धभूमि में आया । उसे देखते ही राम के पराक्रमी सेनापति गण जिन्हें देव आकाश से देख रहे थे, सेना सहित युद्ध के लिए अग्रसर हुए । ( श्लोक ८८- ९२ )
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तब दानव सेना देव
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