Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
166]
को नष्ट करने के लिए उस दुष्ट अङ्गारक ने दावानल प्रकट किया, जिसे अकारण बन्धु आपने शान्त कर दिया । जो मनोगामिनी विद्या छह महीने में सिद्ध होती हैं, आपकी सहायता से मुहूर्त मात्र में सिद्ध हो गई।
(श्लोक २५९-२६५) साहसगति का वध राम ने किया था और वे उनके कार्य-साधन के लिए हो लङ्का जा रहे हैं और क्यों जा रहे हैं, यह समस्त कथा हनुमान ने उन लोगों को बता दी। यह सुनकर वे प्रसन्न हुयीं और हनुमान द्वारा कथित बात पिता को जाकर सुनाई । तब गन्धर्वराज तीनों कन्याओं और वृहद् सेना लेकर राम के निकट पहुंचे।
(श्लोक २६६.२६७) वहाँ से वीर हनुमान लङ्का पहुंचे। वहाँ उन्होंने काल रानिसी भयानक अशलिका नामक विद्या को देखा। विद्या भी उन्हें देखकर बोली, 'ओ बन्दर ! तू कहाँ जा रहा है ? अनायास ही तू मेरा भक्ष्य बन गया है।' ऐसा कहकर उसने मुह फैलाया। हनुमान भी उसी प्रकार हाथ में गदा लिए उसके मुह में प्रवेश कर गए और उसका पेट चीरकर सूर्य जैसे बादल से बाहर निकलता है उसी प्रकार निकल आए। उसने लङ्का के चारों ओर एक दीवार का निर्माण कर रखा था। हनुमान ने अपने विद्याबल से जिस प्रकार मिट्टी के पात्र को तोड़ दिया जाता है उसी प्रकार उसे तोड़ दिया। वज्रमुख नामक एक राक्षस उस प्राकार का रक्षक था। वह क्रुद्ध होकर हनुमान से युद्ध करने लगा। युद्ध में हनुमान ने उसे मार डाला । उस राक्षस के विद्याबल से बलवती लङ्कासुन्दरी नामक एक कन्या थी। स्व-पिता को निहत होते देख उसने हनुमान को युद्ध के लिए आह्वान किया। जिस प्रकार पर्वत पर बार-बार विद्युत्पात होता है उसी प्रकार वह हनुमान पर बार-बार अस्त्र-प्रहार कर अपनी रण-पटुता प्रदर्शन करने लगी। हनुमान ने अपने अस्त्रों से उसके अस्त्रों को रोककर अन्त में उसे पत्रहीन लता की भाँति निःशस्त्र कर दिया।
(श्लोक २६८-२७५) ___'कौन है यह वीर ?' कहती हुई आश्चर्य सहित जैसे ही उसने हनुमान की ओर देखा वैसे ही काम-शर ने उसे बींध डाला अर्थात् वह काम के वशीभूत हो गई । तब वह हनुमान से बोली, 'हे वीर ! आपने मेरे पिता की हत्या कर दी इसलिए क्रोधावेश में बिना कुछ