Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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त्याग कर राम के पास चले आए। उनके पीछे-पीछे अन्यान्य राक्षस
और विद्याधरों की ३० अक्षौहिणी सेना भी रावण का परित्याग कर चली गई। विभीषण को सैन्य सहित आते देखकर सुग्रीव आदि चिन्तित हो गए। कारण डाकिनी की तरह शत्रु पर तत्काल विश्वास नहीं किया जा सकता । विभीषण ने प्रथम एक दूत भेज़ कर राम को अपने आने की सूचना दी। राम ने अपने विश्वास पात्र सुग्रीव के मुख की ओर देखा।
(श्लोक ३५-३७) सुग्रीव बोले, 'हे देव, यद्यपि सभी राक्षस जन्म से ही मायावी और क्षुद्र प्रकृति के होते हैं फिर भी यदि विभीषण यहां आना चाहते हैं तो आएँ। हम लोग गुप्त रीति से उनका शुभाशुभ भाव जान लेंगे एवं तदुपरान्त उनके भावानुसार योग्य व्यवस्था करेगे।
(श्लोक ३८-३९) उसी समय जो कि विभीषण को अच्छी तरह जानता था वह विशाल नामक खेचर बोला, 'हे प्रभु. इन राक्षसों में विभीषण ही एक मात्र धर्मात्मा और महात्मा है ! इन्होंने ही रावण से सीता को छोड़ देने के लिए कहा था। रावण ने कुपित होकर इन्हें वहिष्कृत कर दिया। इसीलिए ये आपकी शरण में आए हैं। इसमें जरा भी मिथ्या नहीं है।'
(श्लोक ४०-४१) यह सुनकर राम ने उन्हें अपने शिविर में आने की आज्ञा दी। विभीषण ने आकर राम के चरणों में अपना मस्तक रखा। राम ने उन्हें उठाकर छाती से लगा लिया। विभीषण बोले, 'हे प्रभु, मैं अपने अन्यायी अग्रज का परित्याग कर आपकी शरण में आया हूं, अतः मुझे भी सुग्रीव की तरह अपना आज्ञाकारी भक्त समझ कर सेवा की आज्ञा दीजिए !'
(श्लोक ४२-४३) राम ने उसी समय उन्हें आश्वासन देते हुई कहा, 'मैं लङ्का का राज्य आपको दूंगा।' महात्मा को किया हुआ प्रणाम कभी व्यर्थ नहीं जाता।
(श्लोक ४४) ___ हंस द्वीप में आठ दिन अवस्थान कर राम कल्पान्त काल की भांति सैन्य सहित लङ्का की ओर प्रस्थान कर गए। लङ्का (वाह्य) के प्राकार के बाहर २० योजन भूमि को स्व-सेना द्वारा आवत कर एवं व्यूह रचना कर राम युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गए। राम की सेना के कोलाहल ने समुद्र ध्वनि की तरह समस्त लङ्का को वधिर