Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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पुरुष पराजित शत्रु पर भी दया करते हैं। राजा समुद्र ने अपनी तीन कन्याओं का विवाह लक्ष्मण के साथ कर दिया। वे देखने में सुन्दर और स्त्रियों में रत्नरूपा थीं। उस दिन राम सैन्य सहित वहीं अवस्थित रहे। दूसरे दिन सुबह समुद्र और सेतु को लेकर वे वहां से रवाना होकर सुवेल गिरि के निकट पहुंचे। वहां के राजा सुवेल को पराजित कर उस दिन वहीं रहे । तदुपरान्त वहां से रवाना होकर तृतीय दिन हंसद्वीप पहुंचे। वहां से लङ्का निकट ही थी। वहां के राजा हंस को भी पराजित कर राम उस दिन वहीं रहे। लङ्का के अधिवासी राम के आगमन को सुनकर उसी प्रकार भयभीत हो गए जिस प्रकार मीन राशि पर शनि के आगमन से लोक भयभीत हो जाते हैं। उन्हें शङ्का होने लगी कि प्रलय काल चारों ओर से बढ़ा आ रहा है।
(श्लोक ६-१४) राम के सन्निकट आने का संवाद सुनकर हस्त, प्रहस्त, मरीच, सारन आदि रावण के हजार-हजार सामन्त युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गए। शत्रुओं को प्रताड़ित करने के लिए बुद्धिमान रावण ने सैनिकों द्वारा करोड़ों महा भयङ्कर रणवाद्य बजवाए। उसी समय विभीषण ने रावण के निकट जाकर कहा, 'हे अग्रज, क्षण काल के लिए शान्त होकर शुभ फलदायी मेरे कथन पर विचार कीजिए। आपने इहलोक और परलोक दोनों को नष्ट करने वाला कार्य किया है। आपने पराई स्त्री का अपहरण किया है। इस अविवेक जन्य कार्य के कारण हमारा कुल लज्जित हो गया है । अब राम अपनी पत्नी को लेने के लिए यहां आ गए हैं। अतः सीता उन्हें सौंपकर उनका अतिथि सत्कार कीजिए । यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो राम अन्य प्रकार से सीता को ले जाएंगे और आपके साथ आपके समस्त कुल को दोषी ठहराएँगे। साहसगति विद्याधर और खर राक्षस का अन्त करने वाले राम और लक्ष्मण की तो बात ही छोड़िए उनका दूत बनकर आने वाले हनुमान की शक्ति तो आपने देख ही ली है। इन्द्र से भी अधिक आपका वैभव है। यदि आपने सीता का परित्याग नहीं किया तो सीता के साथ-साथ आपका वैभव भी नष्ट हो जाएगा। आप दोनों प्रकार से नष्ट और भ्रष्ट हो जाएँगे।
(श्लोक १५-२२) विभीषण का यह कथन सुनकर इन्द्रजीत बोल उठा, 'तात,