Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कारण रावण परस्त्री से रमण करने की इच्छा करता है और तुम उसकी पत्नी होकर कुट्टनी का कार्य करने आई हो ? रे पापिन्, जब तुम्हारा मुंह देखना ही अनुचित है तब तुमसे बात क्या करूँ ? अतः तुम तुरन्त इस स्थान का परित्याग करो, मेरी दृष्टि से दूर हो जाओ।'
(श्लोक १३१-१३७) उसी समय रावण भी वहाँ आ पहुंचा और बोला, 'सीता, तुम उस पर क्यों कुपित हो रही हो, वह तो तुम्हारी दासी है। मैं भी तो तुम्हारा दास हो गया हूं। अब तुम मुझ पर प्रसन्न होओ। सीता तुम मुझे दृष्टि द्वारा ही प्रसन्न क्यों नहीं कर रही हो?'
(श्लोक १३८-१३९) महासती सीता ने मुह फिरा लिया और बोली, 'अरे ओ दुष्ट, लगता है तुझ पर यमराज की दृष्टि पड़ गई है। इसीलिए तूने मुझ राम-प्रिया का हरण किया है ? हे हताश, हे अपार्थिव वस्तु का आशा कारी, तेरी इस आशा को धिक्कार ! शत्रुओं के लिए कालरूप अनुज सहित राम के आगे तू कब तक जीवित रहेगा?'
(श्लोक १४०-१४१) सीता के इस प्रकार तिरस्कार करने पर भी रावण बार-बार पूर्व की भाँति अनुनय-विनय करने लगा। ऐसी बलवती कामावस्था को धिक्कार !
• श्लोक १४२) उसी समय विपत्ति निमग्ना सीता को मानो देखने में असमर्थ होकर विश्व-प्रकाशक सूर्य पश्चिम समुद्र में जाकर विलीन हो गए अर्थात् अस्त हो गए। घोर रात्रि के प्रवेश करते ही घोर बुद्धि वाला रावण क्रोध और काम से अन्धा होकर सीता को विभिन्न प्रकार से कष्ट देने लगा। उल्ल घुत्कारने लगे, सियार फूफाड़ने लगे, सिंह गर्जना करने लगे। बिलाव परस्पर झगड़ने लगे। बाघ पूछ जमीन पर फटकारने लगे, साँप फत्कारने लगे। भूत, प्रेत, पिशाच और बेताल नङ्गी बरछियाँ हाथ में लिए वहाँ टहलने लगे। ये सब रावण की माया से रचित होकर यमराज के सभासदों की तरह कूदते-फाँदते कुत्सित अङ्गभङ्गी करते-करते सीता को डराने लगे। सीता मन ही मन पंच परमेष्ठी का ध्यान करती हुई चुपचाप बैठी रही । अत्यन्त भयभीत होकर भी रावण की इच्छा नहीं की।
(श्लोक १४३-१४८)