Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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उसे भी धर्मोपदेश सुनाकर शुद्ध श्राविका बना दिया।
(श्लोक १४९-१५३) तदुपरान्त जन्म से ही दारिद्रयाग्नि में दग्ध दम्पती राम के निकट धनप्राप्ति की इच्छा से रामपुरी गए और जिन-मन्दिर में जाकर तीर्थङ्करों की वन्दना की। तदुपरान्त पुरी में प्रवेश कर अनुक्रम से राम के निवास पर जाकर उपस्थित हुए। राम, सीता
और लक्ष्मण को देखते ही उसे स्मरण हो गया कि वह उन पर ऋद्ध हुआ था। अतः उसकी इच्छा वहाँ से भाग जाने की हुई। उसे भयभीत होते देखकर लक्ष्मण दयार्द्र होकर बोले, 'हे ब्राह्मण ! भय का कोई कारण नहीं है। यदि प्रार्थित होकर आए हो तो इधर आओ और जो कुछ चाहिए बताओ।' यह सुनकर वह निःशङ्क होकर राम के समीप गया और उन्हें आशीर्वाद देकर यक्ष द्वारा प्रदत्त आसन पर उनके सम्मुख बैठ गया। तब राम ने पूछा, 'भद्र ! तुम कहाँ से आए हो?' वह तोला-'मैं अरुण ग्राम-निवासी वही ब्राह्मण हूं। क्या आपने मुझे पहचाना नहीं ? जब आप मेरे घर पर अतिथि रूप में आए थे तब मैंने क्रोधवशतः आपको बहुत कठोर वचन कहे थे। फिर भी आपने मुझ पर दया कर इन्हीं आर्य पुरुष के हाथों से मुक्त करवाया था।' कपिल की पत्नी सुशर्मा ने भी दीनहीन मुख लिए सीता के पास जाकर उसे आशीर्वाद दिया और पास बैठकर पूर्व विवरण विवृत किया। राम ने उसे खूब धन देकर उसकी इच्छा पूर्ण कर विदा किया। वहाँ से वे अपने गाँव लौट गए। अब कपिल के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया । एतदर्थ यथा- . रीति दान देकर वह नन्दावतंस मुनि से दीक्षित हो गया।
(श्लोक १५४-१६२) वर्षा ऋतु समाप्त होने पर राम ने जाने की इच्छा प्रकट की। यह सुनकर गोकण यक्ष करबद्ध होकर उनके सामने खड़ा हो गया और बोला-'हे प्रभ ! आप यहाँ से जाना चाहते हैं तो प्रसन्नतापूर्वक जाइए। आपकी सेवा में यदि कोई त्रुटि रह गई हो या मेरे द्वारा कोई अपराध हो गया हो तो क्षमा करें। हे महाबाहु, आपके अनुरूप सेवा करने का सामर्थ्य किसमें है ?' ऐसा कहकर स्वयंप्रभ नामक एक हार राम को, दो दिव्य कुण्डल लक्ष्मण को और चूड़ामणि सीता को भेंट की। साथ ही इच्छानुसार वादित