Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
1021
टङ्कार ने धरती और आकाश को गुंजित करते हुए पटह की तरह राम की कीर्ति प्रसिद्ध कर दी । सीता तत्क्षण अग्रसर हुई और राम के गले में वरमाला अर्पण कर दी । तब राम ने धनुष को प्रत्यंचा से मुक्त कर दिया । 1. श्लोक ३३९-३४८ ) तदुपरान्त लक्ष्मण ने राम की आज्ञा से अर्णवावर्त धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई जिसे लोग विस्मित होकर देखने लगे । तब लक्ष्मण ने प्रत्यंचा खींचकर छोड़ दी । उससे जो ध्वनि निकली उससे मानो दिक्समूह के कान वधिर हो गए । फिर लक्ष्मण ने प्रत्यंचा उतार दी । ( श्लोक ३४९ ) उसी समय विस्मित और चकित १८ विद्याधरों ने देव कन्याओं-सी अद्भुत सुन्दर कन्याएँ लक्ष्मण को दीं । चन्द्रगति आदि विद्याधर राजा लज्जित होकर दुःखार्त भामण्डल को लेकर स्व-स्व राज्य को लौट गए । (श्लोक ३५०-३५१) राजा जनक ने दशरथ को संवाद भेजा । दशरथ के आने पर राजा जनक ने खूब धूमधाम से राम के साथ सीता का विवाह कर दिया । जनक के भाई कनक ने रानी सुप्रभा के गर्भ से उत्पन्न अपनी कन्या भद्रा का विवाह भरत के साथ कर दिया। तत्पश्चात् राजा दशरथ पुत्र और पुत्रवधुओं सहित प्रजाजन द्वारा कृत उत्सव से मुखरित अयोध्या नगरी लौट आए । (श्लोक ३५२ - ३५४) एक बार दशरथ ने खूब धूमधाम से चैत्य महोत्सव और शान्ति स्नान करवाया। राजा ने स्नात-जल अपनी पटरानी अपराजिता ( कौशल्या ) को अन्तःपुर के एक वृद्ध पुरुष के द्वारा भेजा । तदुपरान्त अन्य दासियों द्वारा अन्य रानियों को भी वही स्नात्त्र-जल भेजा । तरुण अवस्था के कारण दासियाँ द्रुतगति से वह जल रानियों के पास ले गईं और उन्होंने भी वन्दना कर उस जल को मस्तक से लगाया । । श्लोक ३५५-३५७ अन्तःपुर का अधिकारी वृद्ध होने के कारण शनिग्रह की भाँति धीरे-धीरे जा रहा था । अतः पट्ट महारानी को वह जल शीघ्र नहीं मिला । इससे दुःखी होकर वह सोचने लगी, राजा ने सब रानियों को स्नात्र - जल भेजकर उन पर कृपा की है; किन्तु मुझे पट्ट महारानी होते हुए भी वह जल नहीं भेजा । अतः मुझसी भाग्यहीना का जीवित रहने से क्या लाभ है ? मान नष्ट हो