Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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नेत्रों में अश्रु उमड़ आए। बोला -'वत्से, मैं हनुपुर के राजा चित्रभानु तथा रानी सुन्दरीमाला का पुत्र हूं, तुम्हारी माँ मानसवेगा के भाई चित्राम का मैं अनुज हूं। सौभाग्यवश ही मैं तुम्हें जीवित देख सका हूं। अब तुम्हें कोई चिन्ता नहीं करनी होगी।' ।
(श्लोक २९-२०१) अपने मामा को देखकर अंजना अधिक रोने लगी। स्वजनमित्र के मिलने पर प्रायः दुःख दुगुना हो जाता है। उसे रोते देख प्रतिसूर्य ने विभिन्न प्रकार से उसे आश्वसित कर शान्त किया। तदुपरान्त उनके साथ आए नैमित्तिक से जातक के सम्बन्ध में पूछा। नैमित्तिक ने कहा, 'यह बालक ऐसे लग्न में जन्मा है जबकि समस्त ग्रह शुभ और बलवान हैं। फलतः यह महापुण्यवान राजा होगा और इस जीवन में ही मुक्त होकर सिद्ध पद प्राप्त करेगा। आज चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी है और वार रविवार है । सूर्य उच्च स्थान प्राप्त कर मेष राशि में अवस्थित है। चन्द्र मकर का होकर मध्यभवन में स्थित है। मङ्गल मध्यम होकर वष राशि में आया है। बुध मध्यता से मीन राशि में बैठा है। गुरु उच्च स्थान प्राप्त कर्क राशि में प्रवेश कर रहा है, शनि भी मीन राशि में है। मीन लग्न का उदय हुआ है और ब्रह्म योग है। अत: इसकी जन्म कुण्डली सब प्रकार से शुभ है।'
(श्लोक २०२-२०८) तब प्रतिसूर्य बसन्ततिलका और अंजना को स्वविमान में बैठाकर अपने नगर को रवाना हुआ। विमान की छत पर एक रत्नमय झूमका लटक रहा था। उसको लेने की इच्छा से बालक माँ की गोद से उछला, उछलते ही वह विमान से नीचे पर्वत पर जा गिरा मानो आकाश से वज्र गिरा हो। उसके आघात से पर्वत चूर-चूर हो गया। पुत्र को विमान से गिरते देख अंजना चिल्लाकर रो उठी और छाती पीटने लगी। उसका क्रन्दन पर्वत गुफा में प्रतिध्वनित होकर ऐसा लगा मानो अंजना के साथ पर्वत भी रो रहा है।
(श्लोक २०९-२१२) प्रतिसूर्य तत्काल नीचे उतरा और अक्षत बालक को धरोहर रखे धन की भाँति अंजना को सौंप दिया। फिर मन की गति से वेगवान् उस विमान द्वारा वह अपने नगर पहुंचा। नगर आनन्दोत्सव में झूम उठा। अंजना को अन्तःपुर में भेज दिया