Book Title: Trigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Author(s): Lakshmivijay
Publisher: Bhogilal Kalidas Shah
View full book text
________________
( ७४ )
श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे.
॥ अथ तृत्रीयः प्रकाशः ॥
नमस्कृत्य जगन्नाथं जगत्पूज्यं जिनेश्वरम् ॥ ग्रन्थस्यास्वप्रकाश तृतीयञ्चतनोम्यहम् ॥ १ ॥
१ प्रश्न - श्रीजैनमार्गमां जीवना केटला भेद छे ?
. उत्तर - बे. संसारी जीव, अने मोक्षना जीव.
१२ प्रश्न - संसारी जीव, अने मोक्षना जीव, कया समजवा ?
उत्तर - चार गतिरूप संसारमां जे रह्या छे, ते संसारी जीव जाणवा, अने ते अनन्तानन्त छे. अने चारगतिरूप संसारमांथी नीकळी पांचमी मोक्षगतिने जे पाम्या छे, ते मोक्षना जीव जाणवा. ते एक निगोदने अनन्तमे भागे अनन्ता छे. ३ - संसारीजीवना अने मोक्षजीवना अनन्तज्ञानादिक भावप्राणमां तफावत हशे ?
उत्तर - हा, संसारी जीव कर्षसहित छे, तेथी सेना भावमाणमलिनछे निर्मल नथी, अने मोक्षजीव कर्मरहित छे. तेथी तेना भावप्राण अत्यन्त निर्मल छे.
४ प्रश्न - जीवोने कर्मसंयोग क्यारे थयो ते कहो ?
उत्तर - प्रवाहनी अपेक्षाए करी जीवोने कर्मसंजोग अनादिकाळनो छे. " अणाइयंतंपवाहेण " इति व० नवो संयोग नथी के dit आदि कहीए.
५ प्रश्न - प्रवाहनी अपेक्षाए करीने पण जीवोने कर्मसंयोगसादि छे एम आपणे मानीए तो केम ?