Book Title: Trigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Author(s): Lakshmivijay
Publisher: Bhogilal Kalidas Shah
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श्रीम श्रोत्तर प्रदीपे.
ख्यातगुणो जाणवो. कारण के सचेतन, अचेतनवस्तुपर्ष्याय परिच्छेदकपणेकरी तेमां बधारे वखत लागेछे तेमज छद्मस्थ जीवोनो तथाप्रकारनो तेवो स्वभाव छे. अने केवळभागवाने ते दरेक उपयोग एकसमयनोज छे. शाथी के ते भगवान् समयवेदीछे. तेमने प्रथमसमये साकार उपयोगहोय छे अने बीजेसमये निराकार उपयोग होयछे एम समयान्तरवात जाणवी. अत्रबहुमत छे ते श्रीनंदीमुत्रनी टीका बीगेरे जोवाथीसमजाशे.
( १६६ )
४० प्रश्न - स्त्री सातमीनरक पृथ्वीविष तथा सर्वार्थसिद्धविषे जाय ? उत्तर – सातमीनरकपृथ्वीविषे न जाय पण सर्वार्थसिद्धविषेतो जाय. एम श्रीपन्नवणासूत्राना कर्मप्रकृतिनामा त्रेविशमापदनी daarurat कही शकायछे.
तथाचतट्टीका
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मानुषी तुसप्तमनारकपृथ्वीयोग्यमायुर्नबध्नाति ।
अनुत्तरसुरायुस्तुबध्नातीति
66
aat अत्र दृष्टान्ततरीके पृथ्वीचन्द्रराजानी पूर्वभवनी ओ सर्वार्थसिद्धे मनुष्यपणानेपामी सिद्ध एली ओछे. एमपृथ्वीचन्द्रचरित्रमां कहेल े. तेमज अप्रकारिपूजा चरित्रमां " कनकमाला " सर्वार्थसिद्धेगइ एमकडेलंछे. वळी श्रीविजयचन्द्रचरित्रमां पण नीचेलख्या मुजबकहेलुंछे.
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तद्यथा
सासग्गाओचविउंएथ्थविजम्मं मितुहसहीहोइत -
तोमरिउंतुभ्पेसवठ्ठेदो विदेवत्ति
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