Book Title: Trigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Author(s): Lakshmivijay
Publisher: Bhogilal Kalidas Shah

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Page 211
________________ पञ्चमःप्रकाशः (१८३ ) २-तथा मगधदेशनाराजा श्रीश्रेणिकमहाराजाए श्रीजिनमंदिरो कराव्यां छे. ते अधिकार श्रीआवश्यकसूत्रमा तथा श्रीहेमचंद्राचार्यकृतश्रीयोगशास्त्रमा छे. ३-तथा श्रीराजगृहीनगरीना शेठ श्रीशालिभद्रना पिताश्रीए पोताना घरमां सुशोभित श्रीजिनमंदिर कराव्युं छे, ते वात श्रीशालिभद्रचरित्रमा छे. ४-तथा प्रभावतीराणीए पोताना अंतःपुरमा श्रीजिनमदिर बंधाव्युं छे. ते वीगेरे अधिकार श्रीआवश्यकसूत्रमांछे. ५-तथा वागुरश्रावके श्रीपुरिमतालनगरमा श्रीमल्लिनाथमहाराजनुं मंदिर कराव्युं छे ते अधिकार श्रीआवश्यक- . सूत्रमा छे. ६-तथा देशपूर्वधरश्रीआर्यसुहस्तिसूरिजीना प्रतिबोधयी संपतिराजाए सवालाख नवीनजिन प्रासाद, छत्रीसहजार जीर्णपासादोद्धार, सवाक्रोड जिनबिंब, पंचाणुहजार पीतळमयजिनप्रतिमा, अने अनेकसहस्रदानशाळाआदिकेकरी त्रिखंडपृथ्वीने घणीज शोभावी छे, इत्यादि अधिकार श्रीकल्पसूत्रनी टीकाओमां छे. हाल पण श्रीसंपतिराजाना करावेलां जिनमंदिरो घणे ठेकाणे विद्यमान छे. ७-तथा वि० सं० १०८ मां जावडसाए श्रीशत्रुजयपर भोगणीसलाख सोनामोहोरो खरची उद्धार को प्रतिष्टा दर्शपूर्वघरश्रीवज्रस्वामिजीए करी इत्यादि अधिकार श्री १-२ "महागिरिमुहस्त्याद्या धजान्तादशपूर्वणिः" इत्यभिधानचिन्तामणिवचनात्.

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