________________
प्रस्तावना।
इस त्रिवर्णाचार ग्रंथके कर्ता श्रीसोमसेन सूरि हैं । इस ग्रथमें मुख्यतासे तीन वर्गों के आचारका वर्णन है । प्रसंगवश यतिधर्मका वर्णन भी इस ग्रंथमें किया गया है । बीच बीचमें शूद्रोंकी चर्याका उल्लेखभी इसमें पाया जाता है । शय्योत्थानसे लेकर शय्याशयन तककी प्रतिदिनकी क्रियाओंका समावेश भी बड़ी योग्यता और खूबीके साथ किया गया है । मूल ग्रन्थ संस्कृत भाषामें है । उसीका यह हिंदी अनुवाद मूल-सहित पाठकोंकी सेवामें उपस्थित किया जाता है । आशा है कमसे कम धर्मप्रेमी सज्जन इससे थोड़ा-बहुत लाभ उठावेंगे।
ग्रन्थ प्रकाशक बाबू बिहारीलालजी कठनेराकी प्रेरणासे मैंने इस ग्रन्थका अनुवाद किया है । यद्यपि ग्रन्थका अनुवाद कई वर्षों में पूर्ण हुआ है तोभी इसके शुरू के १० अध्यायोंके अनु. वादमें प्रकाशक महोदयकी शीघ्रताके कारण अत्यन्त ही शीघ्रता करनी पड़ी है । बाद बीचके वर्षों में धीरे धीरे जितना अंश अनुवादित हो चुका था वह मुद्रित होता रहा । जब वह खतम हो गया तब पुनः प्रकाशक महोदयका तकाजा प्रारंभ हुआ अतः शेष भागमेंभी शीघ्रता करनी पड़ी । अत एव एक तो शीघ्रतावश ग्रन्थके अनुवादमें कहीं कहीं त्रुटियां हो गई हैं तथा कुछ त्रुटियां अज्ञानवशभी हो गई हैं। मैं चाहता था कि उन त्रुटियों का मार्जन परिशष्ट भागमें पूर्णतः करदूं पर फिरभी समयाभावके कारण पूर्णतया नहीं करसका हूं। अतः पाठकोंसे क्षमा प्रार्थना करता हूं कि वे त्रुटियोंके स्थलोंको जैनागमके अनुसार समझनेकी कोशिश करें।
इस ग्रन्थका अनुवाद मुद्रित प्रतिपरसे किया गया है जो कि मराठी अनुवादसहित कई वर्षों पहले मुद्रित हो चुकी है और कई स्थलोंमें अशुद्धभी मुद्रित हुई है । एकवार मुझे एक लिखित प्रति भी कितना ही अनुवाद हो चुकनेके बाद मिली थी, सो भी बहुत कम समयके लिए मेरे पास रह सकी थी जो प्रायः अशुद्ध है पर फिरभी उससे सरसरी तौर पर कई स्थल शुद्ध किये गये हैं और कई स्थल ग्रन्थान्तरोंसे शुद्ध किये गये हैं तो भी कितने ही स्थल ज्यों के त्यों अशुद्ध रह गये हैं । इसके लिए भी पाठकोंसे क्षमा प्रार्थना है । .. ग्रन्थ-संशोधनके विषयमें भी मैं क्षमा प्रार्थना करना चाहता हूं। ग्रन्थका संशोधन कहीं किसीने और कहीं किसीने मन चाहा किया है । संशोधकोनें ग्रन्थके संस्कृत मूल अवतरणोंको कहीं रहने दिया है और कहीं निकाल दिया है। इसतरह और भी इधर उधरका पाठ छोड़ दिया है कोई कोई वाक्य और श्लोक जो नीचे रखने चाहिए थे वे ऊपर और जो ऊपर रखने चाहिए थे वे नीचे रख दिये हैं। मुझे जहां तक खयाल है संशोधकोंने कई स्थलोंमें अनुवाद परिवर्तन भी कर डाला है । अस्तु, एक हाथसे संशोधन होता तो अच्छा रहता। .
__ यद्यपि संहिता ग्रन्थोंपर मेरी पहलेसेही आस्था थी, ज्यों ज्यों इन ग्रन्थोंकी कूटता उड़ाना प्रारंभ किया त्यों त्यों मैं उनका विशेष विशेष आलोडन करने लगा।मुझे लोगोंकी छल-कपटके सिवा