Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 8
________________ (७) छहढाला सार्थ-स्व० पं० दौलतरामजी रचित । श्रीयुत ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीकृत सरल अर्थ सहित । इस छोटेसे ग्रन्थमें जैनधर्मका मर्म कूट-कूट कर भर दिया गया है । इसे पढ़ कर थोड़ेमें जैनधर्मकी वहुतसी बातें जानी जा सकती हैं। विद्यार्थियों के लिए तो यह अत्यन्त उपयोगी है । यह प्रत्येक पाठशालामें पढ़ाया जाता है । मूल्य सिर्फ चार आने। छहढाला मूल-स्व. पं० दौलतरामजी रचित । मूल्य एक आना । नियमपोथी--इसे ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने संग्रह किया है। श्रावकोंक जो प्रतिदिन करनेके सत्रह नियम हैं, उनका इसमें खुलासा है । मूल्य एक आना। हिन्दी-कल्याण-मन्दिर-संस्कृत कल्याणमंदिरस्तोत्रका खड़ी बोलीकी कवितामें हिन्दीके प्रसिद्ध कविरत्न पं० गिरिधरशर्माकृत बड़ा ही सुन्दर अनुवाद है । मूल्य - ) चौसठऋद्धिपूजा-यति श्रीरूपचंदजी विरचित । इसीको बृहतगुर्वावली पूजा कहते हैं । मल्य बारह आना। सुखसागर-भजनावली-ब्रह्मचारी शीतलप्रशादजी रचित २५१ आध्यात्मिक पद, भजन, गजल, होली, लावनी, बारहभावना, दोहावली और अष्टान्हिक पूजन तथा सजोतक्षेत्र . स्थित श्रीशीतलनाथ जिनपूजनका संग्रह । दूसरी बार छपाई गई है । मूल्य ११) हितैषी-गायन-अर्थात् बालक-भजन-संग्रह पंचम भाग । पं० भूरामलजी मुशरफ रचित सामाजिक उपदेशी भजनोंका संग्रह ! आधुनिक कुरीतियां और फुजूलखर्चीके कार्योंको बंद करानेकी शिक्षाके कई भजन इसमें हैं। मूल्य ) चौवीसठाणाचर्चा-गोम्मटसारके आधारपर लिखित । इसमें गति, इन्द्रिय, काय, योग आदि चौबीस स्थानोंको इनके उत्तर भेद चार गति, पांच इन्द्रिय, छह काय, पन्द्रह योग आदिमें पृथक् २ घटाया है । इसमें भाषा चौवीस-ठाणा और चौवीसदंडक भी शामिल कर दिये हैं। आरंभमें चर्चा वार्ता सीखने के लिये यह पुस्तक बहुत उपयोगी है । इसलिये विद्यार्थियों के बड़े कामकी है। दो बार छपकर बिक चुकी है । इसलिये फिरसे तीसरी बार छप रही है । मूल्य॥=) हिन्दी-भक्तामर और मरी-भावना-संस्कृत भक्तामर-स्तोत्रका खड़ी बोलीकी कवितामें हिन्दीके प्रसिद्ध कविरत्न पं० गिरिधर शर्माकृत सुन्दर अनुवाद । जिस छन्दमें मूल भक्तामर है उसी छन्दमें यह भी है । इसलिये पढ़नेमें बड़ा आनन्द आता है । यह एक बार छप कर बिक चुका है। इसलिये पं० जुगलकिशोर मुख्तारकृत मेरी-भावनासहित फिरसे बढ़िया एंटिक कागज पर छपाया है । मूल्य डेढ़ आना । नागकुमारचरित-षट्-भाषा-कवि-चक्रवर्ती मल्लिषेणसूरिके संस्कृत ग्रंथका हिन्दीअनुवाद । खतम । सम्यक्त्वकौमुदी-इसमें सम्यक्त्वको प्राप्त करने वाले राजा उदितोदय आदिकी पाठ सुन्दर कथाएं हैं । इसमें जगह २ नीतिके श्लोक उद्धृत किये हैं । खतम ।

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