Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ (vii) भाषा की प्रवहणीयता एवं अभिव्यक्ति की चारुता में आचार्य तुलसी का साहित्य बेजोड़ है । आचार्यों के बाद पंथ के शताधिक साधु-साध्वियों ने राजस्थानी भाषा की प्रभूत अभ्यर्थना की है। मुनिश्री वेणीरामजी एवं मुनिश्री हेमराजजी आचार्य भिक्षु के समय के प्रसिद्ध लेखक हो चुके हैं। आचार्यश्री भारमलजी के शासन काल के मुनिश्री कर्मचन्द जी का 'ध्यान' नामक ग्रन्थ एवं मुनिश्री जीवो जी के लगभग १० हजार पद्य प्रसिद्ध हैं । उनका 'शासन - विलास' महत्वपूर्ण है । तृतीय आचार्य रायचन्दजी के दीक्षित शिष्य मुनिश्री गुलहजारी जी की कुछ गीतिकाएं आज भी उपलब्ध हैं । मुनिश्री छोगजी की 'जयछोग सुजना विलास' नामक कृति प्रसिद्ध है । तुलसी का शासनकाल में आधुनिक काल के भास्वर - भास्कर आचार्यश्री तेरापंथ का स्वर्णकाल कहा जा सकता है । इस काल अनेक शेमुषी - प्रतिभासम्पन्न, सारस्वत-गुण-गुंफित कवि हो चुके हैं । इस काल ने भारतीय साहित्याकाश को एक ऐसा विद्योतित नक्षत्र समर्पित किया है, जो सहस्राब्दियों तक आने वाले काल को अपनी प्रखर - आभा से विद्योतित करता रहेगा । वक्तृता और लेखन उभयविध दुर्लभ - कलाओं से परिपूर्ण एवं महाप्रज्ञ के सार्थक अभिधान से अभिहित यह कलाकार निश्चित ही युग-युग तक युवक आचार्ययुवाचार्य बना रहेगा। संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी के अतिरिक्त राजस्थानी भाषा भी इस मनीषी की पावन - लेखनी का संस्पर्श पाकर धन्य हो गई । मुनिश्री बुद्धमल जी अपनी माटी के कवि हैं । 'उणियारो', 'मिणकला', 'पगतियां' आदि इनके प्रसिद्ध काव्य-ग्रंथ हैं । सुप्रसिद्ध गीतिकार एवं गायक भी हैं । 'जागण रो हेलो' में संकलित १०८ गीत इनकी गीतिसृजन - प्रतिभा के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । आधुनिक साहित्यकारों में मुनिश्री काणमल जी की 'पायलिप्त', मयरावती' एवं 'जा सा सा' आदि प्रमुख रचनाएं हैं । इस परंपरा के साहित्यकारों में मुनिश्री दुलीचन्दजी का नाम अग्रगण्य है । सृजनकला एवं सुस्वर गला रूप एकत्र - अलभ्यमान द्विविध तत्त्वों से मुनिश्री का व्यक्तित्व सम्पन्न है । 'आत्मबावनी', अध्यात्म - गीतांजली, मायलीबात आदि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं। सौम्य-सृजन की सुगंधि से सुवासित मुनिश्री छत्रमल जी की लेखनी साहित्य की अनेक विधाओं में पहुँची है । 'अमृत रा गुटका' 'छत्र दोहावली' मंजुला आदि इनके प्रमुख प्रकाशित ग्रंथ हैं । मुनिश्री सुखलाल जी राजस्थानी गद्य एवं पद्य दोनों के विरचन में निष्णात हैं । मुनियों के अतिरिक्त अनेक साध्वियाँ इस क्षेत्र में काफी आगे हैं । साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी लेखन एवं वक्तृता के लिए विख्यात हैं । अनेक मुनिगण ऐसे हैं जो विविधआयामी - प्रतिभा के धनी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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