Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 10
________________ श्लोकवार्तिक विषयसूची ७८ __ पंचमाध्याय सूत्र १ १-१५ बलाधान निमित्त अजीव कायके नाम परिणामका लक्षण ६३ अजीवोंका लक्षण सिद्धोंमें भी ऊर्ध्वगमनरूप क्रिया है सूत्र २ १५-२१ क्रिया व क्रियावान कथंचित भिन्न व अभिन्न ६६ द्रव्यका लक्षण बौद्धोंका खण्डन ७० द्रव्यसे पर्याय कथंचित भिन्न १६ कूटस्थ नित्य का खण्डन ७२ सूत्र ३ २१-२४ सूत्र ७३-७९ जीवके विषयमें बौद्धादि मतोंका खण्डन धर्मादिक द्रव्य मुख्य रूपसे सप्रदेशी है २५-३२ सूत्र ५ नियतिवाद पर्याय .. अनन्तकी व्याख्या द्रव्याथिकसे द्रव्य नित्य व अवस्थित पर्याया प्रदेश और प्रदेशवानका कथंचित् भेद थिक नयसे अनित्य व अनवस्थित कथंचित् अभेद ८०-८१ मूर्त द्रव्यके गुण कथंचित् मूर्त कथंचित् अनेक द्रव्योंसे बना हुआ द्रव्य अनादि और अमूर्त हैं अनन्त नहीं हो सकता ८३ सूत्र ५ ३३-१४ वस्तुभूत कार्यका कारण उपचरितपदार्थ नहीं । रूपी शब्द का अर्थ मूर्त है। ३४ हो सकता मुख्य पदार्थ ही कारण होगा ८४ सूत्र ६ ३४-३८ . अंश रहित पदार्थ सर्वव्यापी नहीं हो सकता ८५ धर्म अधर्म आकाशमें एक एक द्रव्य है किन्तु व्यापकता व निरंशमें तुल्यबल विरोध है। जोव पुद्गल कालमें अनेक द्रव्य है ३६ परमाणु सावयव है सूत्र आकाशके अनन्तप्रदेशत्वकी सिद्धि - अंतरंग बहिरंग निमित्तोंके मिलने पर कल्पित पदार्थ सभी प्रकारसे अर्थक्रिया को देशान्तर प्राप्तिका कारण है वह क्रिया है ३८ . नहीं कर सकता ९२ 'सत्' लक्षण शुद्ध द्रव्यका है ४० यदि ज्ञान के द्वारा जाना जानेसे आकाश 'गुणपर्ययवत्'। यह लक्षण अशुद्ध द्रव्यका है ४०-४१ ... अनन्त नहीं रहेगा तो वेदके भी अनन्तपनेका सदृशपरिणाम ही सामान्य है प्रभाव आ जायगा सामान्य भी अनित्य है वस्तुको यथार्थ जानना प्रमाणका स्वभाव है अन्तरंग और बहिरंग कारणोंके मिलने पर .. अतः अनन्तको अनन्त रूपसे जानता है ही क्रिया व अन्य पर्याय होती है सूत्र १० ९७-१०४ तीनों जगत्में व्यापनेवाले पदार्थों के क्रिया 'परमाणु ही स्कंध नहीं है' इसका खंडन ९९ नहीं होती सूत्र ११ १०४-११२ काल द्रव्य कालाणु रूप है ५२ . . परमाणु एक प्रदेशो है १०५

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