Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 11
________________ [ १० j १४० परमाणु द्रव्यरूप से निरंश शक्ति रूपसे सांश है धर्मादि द्रव्यों में निष्क्रियत्व व सक्रियत्व आदि अनेक विरोधी धर्मों का कथन १११ सत्यका अमोघ चिन्ह स्यात्कार है ११२ सूत्र १२ ११३-११४ यदि आकाश द्रव्य को अपना ही आधार माना जायगा तो अन्य सब द्रव्य स्वआधार क्यों न माना जाय इसका निराकरण आकाश द्रव्य सर्वव्यापी है अन्य द्रव्य अव्यापी है अतः इनमें आधार आधेयपन बन जाता है ११४ सूत्र १३ ११४-११५ धर्माधर्म द्रव्य संपूर्ण लोकमें क्यों है इस शंकाका निराकरण ११५ सूत्र १४ ११५-११८ पुद्गलका सूक्ष्म परिणमन होने के कारण आकाशके एक प्रदेश पर भी असंख्यात व अनन्तपुद्गल परमाणुमें स्कंध समाजाते हैं ११८ सूत्र १५ ११८-१२० प्रत्येक जीवकी लोकके असंख्यातवें भागमें अर्थात् असंख्यात प्रदेशोंमें अवगाह है १२१-१३३ आत्मा कंथचित् मूर्त कथंचित् अमूर्त आत्मा नित्यानित्यात्मक है १२५ अवयव की व्युत्पत्ति अनुसार आत्मा के प्रदेश नहीं है। केवल परमाणके परिणाम की नाप करके चिह्नित किये गये आत्माके अखंड अंशोंको प्रदेशपनेका कोरा नाममात्र कथन कर दिया है। इसलिये आत्माके भिन्न-भिन्न खण्ड नहीं १२५ सहभावी पदार्थों में भी आधार आधेयभाव निश्चयनयसे आधार आधेय संबंध दो द्रव्योंमें नहीं है, व्यवहारनयका खंडन १३३-१४५ द्रव्यकी देशान्तरमें प्राप्तिका कारण रूप परिणाम गति है। इसीसे विपरीत..... - स्थिति है धर्म और अधर्म द्रव्योंके न मानने पर लोक अलोक विभागका अभाव हो जायगा निरवधि के संस्थानका विरोध है १४०-४१ यदि धर्म अधर्म द्रव्यको लोकाकाश प्रमाण न माना जाय तो लोक अलोकका विभाग संभव नहीं १४५ सूत्र १८ १४५-१४९ आकाशको अन्य द्रव्यके अवगाहकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सर्वव्यापी है १४७ सूत्र १९ १४९-१५१ भाव वचन व भाव मन पौद्गलिक नहीं है १५० सूक्ष्म पुद्गल शरीर आदिके उपादान कारण है अमूर्तीक जीव प्रधान कारण नहीं १५१ सूत्र २० १५१-१५४मरण भी उपकार है १५२ आयु जीव विपाको भी है १५३ सूत्र २१ १५४-१५६ परस्परमें एक दूसरेका अनुग्रह करना जीवोंका उपकार है १५५ १५६-२०९ स्वकीय सत्ताकी अनुभूतिने द्रव्यको प्रत्येक पर्यायके प्रति उत्पाद व्यय ध्रौव्य आत्मक एक वृत्तिको एक ही समयमें गभित कर लिया है, वह स्वकीय सत्ताका तदात्मक अनुभवन करना वर्तना है १५७ काल द्रव्य स्व और पर दोनों के वर्तन सूत्र १६ १२२ का हेतु है होते १२७ वर्तमान कालके अभावमें स्वसंवेदन अर्थात् सुख दुख आदिके वेदनके अभावका प्रसंग आ जायगा वर्तना आदिके द्वारा काल द्रव्यका अनुमान होता है। १३१ १६४

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