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निर्मीक साहसी वीर
सेठ मिश्रीलालजी पाटनी
लश्कर, मध्यप्रदेश
श्रीयुत लाला तनसुखरायजी एक कर्मठ
सेठ मिश्रीलालजी पाटनी मध्य प्रदेश के साहसी जैन वीर युवक, एक जैन महान
| ऐसे खामोश कार्यकर्ता है जो अपने कार्यों से विभूति थे। उन्हे जैन धर्म व जैन समाज व
धर्म और समाज की सच्ची सेवा करते रहते राष्ट्रीय एव समाज की प्रत्येक प्रकार
है। यश की पर्वाह नहीं करते । लश्कर की निर्भीकता से सेवाए की जो भुलाई नही
(ग्वालियर) के कई सस्थामओ के संचालक है। जा सकती वह चिरस्मरणीय है व रहेगी।
जैन मिशन की प्रदर्शनी विभाग के सर्वेसर्वा जिनका विशेप विस्तृत उल्लेख पाठकगणो को
है। जैन धर्म प्रचार और पुरातत्व के प्रति आगे पढने को मिलेगा। मै ऐसे महान जैन
|आपकी विशेष रुचि है । मापने प्रथ के कार्य वीर एव साहसी व्यक्ति के लिए श्रद्धाजलि मे समुचित सहयोग प्रदान किया है। भेज रहा हूँ और जो समिति ने अभिनदन । अथ संकलन कर प्रकाशित किया जाने का प्रयत्न चालू किया है वह अति उत्तम है और यह कार्य समिति के कार्यक्रम के अनुसार सम्पूर्ण हो, यही मेरी शुभ कामना है ।
जैन मन्दिर के पुस्तकालय के प्रबन्धको से निवेदन है कि ऐसे प्रथ को खरीद कर मन्दिर में व पुस्तकालयो मे अवश्य स्मृति हेतु रखे । साहसी वीरता इससे प्रगट होती है। प्रत्येक समाज के चतुर साहसी वीर विद्वान लोग भी इसे अवश्य पढ कर पुनरावृत्ति कर साहसी वीर बन कर चलें।
कह चरे ? कह चट्टे ? कहमासे ? कह सए ?
कह भुजन्तो भासन्तो पाव कम्म न बन्ध ? (भन्ते ! कैसे चले ? कैसे खडा हो ? कैसे बैठे ? कैसे सोए ? कैसे भोजन करे ? कैसे बोले ?-जिससे कि पाप कर्म का बन्धन न हो)
जय चरे जयं चढ़े जयमासे जय सए !
जय भुजन्तो भासन्तो पाव कम्म न बन्धइ !! (आयुष्मन् । विवेक से चलो, विवेक से खड़ा हो, विवेक से बैठो, विवेक से सोए, विवेक से भोजन करे और विवेक से ही बोले तो पाप कर्म नही बंध सकता)