Book Title: Tansukhrai Jain Smruti Granth
Author(s): Jainendrakumar, Others
Publisher: Tansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi

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Page 460
________________ अपरिग्रह का महत्व सुल्तानसिह जैन, एम.ए. शामली ( उ० प्र० ) आज विश्व किन परिस्थितियों से होकर गुजर रहा है, यह बात किसी से छिपी नही है । कुछेक इने-गिने व्यक्तियो को छोडकर जन-साधारण कितना ग्रस्त हो रहा है, यह लिखने की बात नही है । भारत का विभाजन होने के पश्चात् मनुष्यता का किस भाँति सहार हुआ, ललनानो की लज्जा के साथ कैसा खिलवाड हुआ, भ्रष्टाचार, घूसघोरी, चापलूसी का कैसा अखड साम्राज्य छाया । आज की खाद्य पदार्थों की मिलावट तथा उनकी असीम महगाई ने किस प्रकार जनता की रीढ की हड्डी को चकनाचूर किया, किस प्रकार लूट-खसोटकर ताडव नृत्य हुआ और किस भाति मानव-मानव को गाजर-मूली की तरह काट-काट कर हत्या के घाट उतार रहा है, कदाचित विश्व के इतिहास में ऐसा कही दीख पडे ? इससे भी बढकर आज विश्व मे एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को प्रगु-उद्जन, वीर आयुद्धो, स्पुतनिको की तीव्रता, हवाई छत्रियो की भीषणता, तारपीडो की मार से हडप जाने की चिन्ता मे है । सह प्रस्तित्व के नारे की प्राड मे शस्त्रास्त्रो के निर्माण की होड मे एक-दूसरे को पछाडने के प्रयास में संलग्न है । कहना अत्युक्ति न होगा कि विश्व में तृतीय विश्वयुद्ध के घनघोर बादल घटाटोप छाये हुए है । अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि उपरोक्त गुत्थियो के उलझने का क्या कारण है ? प्रश्न तो जटिल है; परन्तु इस सबंध मे अनेकानेक उत्तर- प्रत्युत्तर हो सकते है । यहाँ पर इस सवध मे केवल इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इस युग मे कुछेक लोगो की स्वार्थमयी मनोवृत्ति सबका नाश कर रही है। इतना ही नही आज वस्तुनो के संग्रह करने की प्रबल होड लगी हुई है । फलतः जनता दाने-दाने के लिए मुहताज हो रही है। प्राठ से सायकाल तक की कमाई लिए इधर-सेउधर डोलती फिरती हैं, पर कही भी कोई पैसे को नही सूंघता है। एक ओर यह दशा है तो दूसरी ओर कोठे और गोदाम खाद्यान्नो से खचाखच भरे पडे है, जिनमे सुरीली (कियरफ ) साम्राज्य स्थापित हो चुका है। भूखे मरे तो मरे कौन किसको पूछना है ? इस परिस्थिति का यह साराँश हुया कि आज की दुनिया आर्थिक विषमता के कारण कराह रही है । कही-कही तो यह आर्थिक विपमता सीमा को लाघ गई है, जो सहन-शक्ति से बाहर हो गई है । फलतः अधिकाश लोगो की नित्यप्रति की आवश्यकताये पूर्ण नही हो रही है । इसमे भी माश्चर्य यह है कि जो चोटी एडी का पसीना एक करके कमाते है, अन्न-वस्त्र उत्पन्न करते हैं वही लोग भूखे नगे रहते है, परन्तु वे लोग, जो ग्रीष्म ऋतु मे खश की टट्टी लगाकर कोचोज पर लेट लगाते है, विजली के पखो की हवा खाते हे और प्राकाशवाणी से विश्व के गायन सुनते है तथा तरह-तरह के गुलछर्रे उड़ाते एव मौज करते है । अतएव यह कहना अत्युक्तिपूर्ण न होगा कि आज "स्वार्थ के मद में चूर अपने भाइयो की लाशो पर बैठकर खून की होली खेली जा रही है ।" ४२४ ]

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