Book Title: Tansukhrai Jain Smruti Granth
Author(s): Jainendrakumar, Others
Publisher: Tansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi

View full book text
Previous | Next

Page 483
________________ है । ज्वालामालिनी कल्प नामक एक अन्य रचना इन्द्रनन्दि को भी उपलब्ध है जो गा म०६१ मे मान्यखेट मे रची गयी थी। विद्यानुवाद या विद्यानुगासन नामक एक और भी महत्वपूर्ण रचना है जो २४ अध्यायो मे विभक्त है। वह मल्लिपणाचार्य को कृति बन गयी जानी है परन्तु अन. परीक्षण से प्रतीत होता है कि इसे मल्लिपेण के किसी उत्तरवनि विद्वान् ने ग्रथित किया है। इनके अतिरिक्त हस्तिमरल का विद्यानुवादाग तथा भवनामस्तोत्र मन्त्र भी उल्लेखनीय रचनाएं है। सुभापित और राजनीति सुभापित और राजनीति से सम्बन्धिन माहित्य के सृजन में जैन लेपकी में पर्याप्त योगदान किया है । इम प्रमग में आचार्य अमितगतिका मुभापित रत्नमन्दोह (१०५० वि०) एक सुन्दर रचना है। इसमे सासारिकविपयनिराकरण, मायाहका निराकरण, इन्द्रियनिग्रहोपदेश, स्त्रीगुणदोप विचार, देवनिरुपण आदि वत्तीम प्रकरण है। प्रत्येक प्रकरण वीस-बीम, पच्चीमपच्चीस पद्यो में समाप्त हुआ है । सोमप्रभ की सूक्तिमुक्तावली, मालकीति की मुभापिनावली, प्राचार्य शुभचन्द्र का ज्ञानार्णव, हेमचन्द्राचार्य का योगशास्त्र आदि उच्चकोटि के मुभापित ग्रन्य हैं। इनमे से अन्तिम दोनो ग्रन्यो मे योगशास्त्र का महत्वपूर्ण निरूपण है। ___ राजनीति मे सोमदेषमूरि का, नीतिवावयामृत बहुत ही महत्त्वपूर्ण रचना है । सोगदेवमूरि ने अपने समय मे उपलब्ध होने वाले समस्त राजनैतिक और अर्थशास्त्रीय माहित्य का मन्थन करके इस सारवत नीतिवाक्यामृत का सृजन किया है। अतः यह रचना अपने दग की मौलिक और मूल्यवान है। आयुर्वेद आयुर्वेद के सम्बन्ध मे भी कुछ जैन रचनाए उपलब्ध है । उग्रादित्य का कल्याणकारक, पूज्यपादवैद्यसार अच्छी रचनाए है। पण्डितप्रवर आधाघर (१३वी सदी) ने बाग्भट्ट या चरक सहिता पर एक प्रप्टाग हृदयोद्योतिनी नामक टीका लिसी थी परन्तु नम्प्रति वह अप्राप्य है। चामुण्डरायकृत नरचिकित्सा, सल्लेिपणकृत वालग्रह चिकित्मा, तथा मोमप्रभाचार्य का रसप्रयोग भी उपयोगी रचनाए हैं। कला और विज्ञान ___ जनाचार्यों ने वैज्ञानिक साहित्य के ऊपर भी अपनी लम्बनी घनाई। हमर (१३वी सदी) का मृगपक्षीशास्त्र एक उत्कृप्टकोटि की रचना मानूम होनी है। उनमे १७१२ पद है और इसकी एक पाण्डुलिपि त्रिवेन्द्रम के राजकीय पुस्तबागार में सुरक्षिन है । इसके अतिरिक्त नामुण्टरायकृत कृपजलज्ञान वनस्पतिस्वरूप, विधानादि परीक्षागान्न, धानुमार, धनुर्वेद ग्लपरीक्षा, विज्ञानार्णव आदि भी उल्लेसनीय वैज्ञानिक रचनाए है। ज्योतिप, सामुद्रिक तया स्वप्नगास्त्र ज्योतिपणास्त्र के सम्बन्ध मे जैनाचार्यों की महत्वपूत रचनाए अम। गणित १-जैन नाहित्य और इतिहास (श्री १० नायूगम जी प्रेमी, १०४५)

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489