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जैन समाज के सामने एक समस्या
संगठन की आवश्यकता
इतिहास बताता है कि जैन समाज का भूतकाल अति उज्ज्वल और शानदार रहा है । "अहिंसा प्रेमी, सेवाभावी, दयालु और परोपकारी होने के कारण छोटे-से-छोटे गांव मे और बडे से वडे शहर में जैन धर्म के अनुयायी बहुत लोकप्रिय रहे है। जन साधारण को दिल्ली मे सदा जैन समाज और जैन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम रहा है ।
त्यागियो और मुनियो के लिए बहुत सन्मान रहा है। जिस भी स्थान में वे पधारते थे वहां की जनता उनका भव्य स्वागत करती थी, उनके प्रवचनो मे भाकर रस लेती थी । बडी रुचि से सुनती थी। शासको को दिल्ली मे भी जैन समाज धौर जैन धर्म के प्रति बहुत श्रद्धा थी ।
सच्चाई, ईमानदारी और लोकप्रिय होने के कारण जैन भाइयो को सरकारी दरवार मे अच्छे और ऊचे पदो पर नियुक्त किया जाता था । गाही खजानो का कार्य भार तो प्राय. कर जनो के हाथो मे रहा है। राजस्थान मे चिरकाल तक मन्त्री पदो और विश्वस्त स्थानो पर जैन भाई श्रारूढ रहे हैं । जैनी बडे-बडे सेनापति हुए हैं, दानवीर हुए हैं। घनकुवेर सेठ भामाशाह जिसने कि महाराणा प्रताप का आडे समय मे साथ दिया था और अपने घन के कोठे उनकी मदद के लिए खोल दिए थे जिससे महाराणा प्रताप ने मुगलो से बारह साल तक युद्ध लड़ा। दानवीर महाप्रतापी भामाशाह जैन ही तो थे । राजस्थान की चप्पा-चप्पा जमीन पर जैन वीरो की बहादुरी, दानवीरता, देशसेवा, स्वामिभक्ति और धर्मपरायणता की छाप अकित है । जैन धर्म के शास्त्रों के बड़े-बडे भडार राजस्थान मे हैं। राजस्थान मे गगनचुम्बी विशाल मंदिर भी बहुत हैं । ससार विख्यात आबू में दिलवाडा का जैन मन्दिर राजस्थान मे ही है। राजस्थान की ही बात क्या देहली और अन्य स्थानो मे भी हमारे पूर्वजो ने बहुत बडे-बडे कार्य किए हैं जो सदा अमर रहेगे और जैन समाज उन पर जितना गौरव करे थोडा है। यदि उन सब का वर्णन करे तो एक पोथा बन जाएगा ।
कितना आनन्द का समय था जबकि भारतवर्ष के जैन समाज मे संगठन था, बिरादरी एकता थी, प्राचार-विचार और खान-पान शुद्ध था, धर्म मे रुचि थी, पचायतो का मानता थी, विरादरी के बडे-बूढो का अदव - लिहाज था। किसी को मजाल नही थी कि बिरादरी के फैसले मे जरा इधर-उधर करे। भारतवर्ष मे देहली मुख्य स्थान माना जाता था। तमाम भारतवर्ष के जैन भाई देहली की जैन पंचायत और विरादरी की ओर निहारते थे और उन पर भरोसा करते थे । जो फैसले दिल्ली की पचायते या बिरादरी करती थी सारा जैन समाज उन सुझावो का पूरापूरा लाभ उठाता था। तमाम भारतवर्ष मे जैन भाइयो का आपस मे बहुत प्रेम था । कोई भी जैन भाई किसी स्थान से आता था तो वहाँ के भाई उसको देखकर बहुत प्रसन्न होते थे । उनके ठहरने और भोजन की व्यवस्था करते थे। किसी तरह उन्हें कष्ट नही होने देते थे। जैन बिरादरी का अन्य धर्मावलम्बियो समाजो - विरादरियो और जातियों से वडा मेल-जोल था और उन पर वडा प्रभाव था । सब एक-दूसरे के दुख-सुख मे काम आते थे । तीज-त्योहारो, मेले
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